Sunday, February 3, 2019

देखो न कितना सुर्ख इतवार उगा है आज



धूप बिखरी हुई है हथेलियों पर
देर तक सोयी आँखों से
ख्वाब झरे नहीं अब तक

चाय की तलब और आलस में लगी है होड़
शोर है बच्चों और पंछियों का
शरारतें हैं

पिछले बरस जब बर्फ गिर रही थी इन दिनों
तुम साथ थे
इस बरस भी पहाड़ियां लिपटी हैं
नगीने जड़ी सुफेद चादर में
बर्फ बन बरस रही है तुम्हारी याद उन पर
सुना है कई बरसों के रिकॉर्ड टूटे हैं

देखो न कितना सुर्ख इतवार उगा है आज.

6 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुर्ख इतवार । वाह।

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,

आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 7 फरवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1301 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,

आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 7 फरवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1301 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।

Kamini Sinha said...

बहुत सुंदर रचना .......

Sudha Devrani said...

बहुत सुन्दर यादें और सुर्ख इतवार....

~Sudha Singh vyaghr~ said...

वाह्ह... सुर्ख इतवार