Thursday, July 12, 2018

ये जो ठहरी हैं हथेलियों पर बूँदें ये तुम हो...



एक पुराना ख़्वाब था, कच्चा सा ख़्वाब कि किसी रोज किसी पहाड़ी गांव में बारिश की धुन बरसेगी रात भर, बूँदें लोरियां सुनाएंगी और मैं सारी रात बूंदों की आवाज ओढकर चैन से सोऊँगी. शायद उस चैन की नींद की तलाश में नींदे भी खूब भटक रही थीं. आपको पता हो न हो आपके ख़्वाबों को जिन्दगी के रास्तों का पता मालूम होता है शायद. जिस वक़्त मैं अपने सपनों पर खुद ही हंस रही होती थी वो सपने हकीकत में ढलने की तैयारी में थे. बारिशों के गाँव में रहती हूँ इन दिनों. सिरहाने बूंदों का राग बजता है, सुबहें धुली-धुली और खिली खिली सी हैं...ये जो बरसे हैं रात भर तेरी याद के बादल हैं, मेरे ख़्वाब के बादल हैं...ये जो ठहरी हैं हथेलियों पर बूँदें ये तुम हो...

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

ख्वाबों के बादल और बारिश चैन की। सुन्दर।