Friday, May 6, 2016

बाकी सब कुछ माया हो...



फ़र्ज़ करो हम अहल-इ-वफ़ा हों फ़र्ज़ करो दीवाने हों
फ़र्ज़ करो यह दोनों बातें झूठी हों अफ़साने हों

फ़र्ज़ करो ये जी की बिपदा जी से ज़ोर सुनाई हो
फ़र्ज़ करो अभी और हो इतनी आधी हमने छुपाई हो

फ़र्ज़ करो तुम्हें खुश करने के ढूंढे हमने बहाने हों
फ़र्ज़ करो यह नैन तुम्हारे सुचमुच के मयखाने हों

फ़र्ज़ करो यह रोह है झूठा झूटी प्रीत हमारी हो
फ़र्ज़ करो इस प्रीत के रोग में सांस भी हम पे भारी हो

फ़र्ज़ करो यह जोग बिजोग का हमने ढोंग रचाया हो
फ़र्ज़ करो बस यही हकीकत बाकी सब कुछ माया हो

(इंशा जी का नाम लो बस इश्क सी सांसत होती है...आवाज़ छाया गांगुली की...शाम हमारी, याद तुम्हारी...सब कितना घुलमिल गया है, शाम मुकम्मल सी...जाते हुए रात के आगोश में आहिस्ता आहिस्ता...)

3 comments:

Onkar said...

सुन्दर

प्रभात said...

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण

कविता रावत said...

बहुत सुन्दर...