Saturday, January 30, 2016

घर से भागने वाली लड़कियां



एक रोज लड़कियां तमाम ख्वाहिशें तह करके
करीने से सूटकेस में लगाती हैं
कच्चे-पक्के ख्वाब रखती हैं साथ में
हिम्मत रखती हैं सबसे ऊपर वाली पॉकेट में
कमर तक लटकते पर्स में रखती हैं मुसुकराहटे

उदास रातों का मोह बहुत है
लेकिन बड़ा सा गठ्ठर है उनका
बार-बार उन्हें छूकर देखती हैं
और सूटकेस में बची हुई जगह को भी
फिर सबसे ज्यादा जागी
और भीगी रातों को रख ही लेती हैं खूब दबा-दबाकर

कागज के कुछ टुकड़े रखती हैं
जिनमें दर्ज है लड़-झगड़ के कॉलेज जाने पर मिले पास होने के सुबूत
हालाँकि जिंदगी में फेल होने के सुबूत बिखरे ही पड़े थे घर भर में
जिंदगी के इम्तहान में बैकपेपर देकर एक बार पास होने की इच्छा
रखती हैं किनारे से सटाकर

कुछ सावन रखती हैं छोटे से पाउच में
एक पुड़िया में रखती हैं जनवरी का कोहरा और कॉफी की खुशबू
जेठ की दोपहरों में घर के ठीक सामने
ठठाकर हँसते अमलताश की हंसी रखती हैं

कुछ किताबों को रखने की जगह नहीं मिलती
तो ठहरकर सोचती हैं कि क्या निकाला जा सकता है
सब रखने की चाहत में जबरन ठूंसकर सब कुछ
सूटकेस के ऊपर बैठकर बंद करने की कोशिश करती हैं

रिहाई का तावीज़ बना टिकट संभाल के रखती हैं पर्स में

पानी पीती हैं गिलास भर सुकून से
घर को देखती हैं जी भरके

एक खत रखती हैं टेबल पर
जिसमें लिखा है कि
लड़कियां घर से सिर्फ किसी के इश्क़ में नहीं भागती
वो भागती हैं इसलिए भी कि जीना ज़रूरी लगने लगता है
कि बंदिशों और ताकीदों के पहरेदारियों में
अपने ख्वाबों का दम घुटने से बचाना चाहती हैं

क्योंकि वो जी भरके जीना चाहती हैं....


5 comments:

Archana Chaoji said...

और जो भाग नहीं पाती हैं घुट-घूट कर जीती हैं क्योंकि फिर भी वो जीना चाहती है ....

Dayanand Arya said...

लड़के भी बिछड़ते हैं कुछ इसी तरह अपनी जड़ों से। हाँ उन्हें इतनी स्वतंत्रता है की उन्हें भागना नहीं पड़ता क्योंकि उनके सपनो को समाज स्वीकार कर लेता है । पर वो समाज उन्हें पूरा तो फिर भी नहीं कर पाता है ।

Unknown said...

उपेक्षित विषय पर अच्छा लिखा है आपने ।

varsha said...

क्योंकि वो जी भरके जीना चाहती हैं....
vaah !!!

प्रवीण पाण्डेय said...

एक आसमान भी होता बैग में, क्योंकि बाहर तो कब्जे हैं।