Sunday, August 23, 2015

जिसको जैसी आंच मिली...


किसी ने दाल पकाई
किसी ने मुर्ग
किसी ने देगची पर चढ़ाये शब्द

जिसको जैसी आंच मिली
उसकी वैसी बनी रसोई

चैन से सोया था मजूर दाल खाकर
रात भर देखता रहा सपने मुर्ग के

मुर्ग खाकर बमुश्किल आई नींद में
सपने में दिखती रही बड़ी गाड़ी

शब्द की देग तो चढ़ी ही रही
कि कोई किस्सा पकने को न आता था
आंच कुछ कम ही रही हमेशा

जागती आखों में कोई शाल उढ़ाता रहा
लोग तालियां बजाते रहे

अधपकी देगों से आती कच्चे मसालों की खुशबू से दूर
कोई बांसुरी बजा रहा है.… सुना तुमने?


5 comments:

सु-मन (Suman Kapoor) said...

बहुत बढ़िया

रचना दीक्षित said...

एक अच्छी प्रस्तुती

Unknown said...

अधपकी देगों से आती कच्चे मसालों की खुशबू से दूर
कोई बांसुरी बजा रहा है.… सुना तुमने?
सुन्दर शब्द रचना.........
http://savanxxx.blogspot.in

Archana Gangwar said...

जिसको जैसे आंच मिली
वेसी उसकी पकी रसोई .........अति सुंदर .....आज आहा ज़िन्दगी में आपकी रचना ....तुम्हारी मन्मर्ज़िया मेरी अमानत है पड़ी और आपको खोजती यहाँ आ गई .........बहुत सुंदर लेखनी को तलवार की तरह से चलने का वक़्त आ गया है ....

jaydeep said...

बहुत सुंदर रचना