Tuesday, March 31, 2015

वो दिल जो मैंने माँगा था मगर गैरों ने पाया था...

तुम अपना रंज-ओ-ग़म, अपनी परेशानी मुझे दे दो
तुम्हे ग़म की कसम इस दिल की वीरानी मुझे दे दो 

ये माना मैं किसी काबिल नहीं हूँ इन निगाहों में 
बुरा क्या हैं अगर ये दुःख ये हैरानी मुझे दे दो

मैं देखूं तो सही दुनिया तुम्हें कैसे सताती है
कोई दिन के लिये अपनी निगेहबानी मुझे दे दो

वो दिल जो मैंने माँगा था मगर गैरों ने पाया था 
बड़ी शय है अगर उसकी पशेमानी मुझे दे दो.… 

- साहिर

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