Thursday, March 5, 2015

मछलियाँ


देह की नदी में
तैरती फिरती हैं

कामनाएं
इच्छाएं
मछलियों की मानिंद

रंग-बिरंगी मछलियाँ
नटखट शरारती
मछलियाँ

तुम्हें मछलियाँ बहुत पसंद हैं
मुझे भी

मुझे जिन्दा
तैरती मछलियाँ
तुम्हें भुनी हुई
लज़ीज़ मछलियाँ

प्यार से पाली पोसी
खूबसूरत मछलियाँ
तुम्हारी तृप्ति की खातिर
लज़ीज़ मछलियों में
तब्दील होकर
देह की तश्तरी में
सज जाती हैं

तुम तृप्त होते हो

मेरी देह
मछलियों की
शोकाकुल याद लिए
नींद की कब्र के बाहर
बरसती है आँखों से

ठीक उस वक़्त
जब नींद बरसती है
तुम्हारी देह पर.…

मछलियाँ तुम्हें भी पसंद हैं
और मुझे भी....

3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

रंगों के महापर्व होली की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (07-03-2015) को "भेद-भाव को मेटता होली का त्यौहार" { चर्चा अंक-1910 } पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar said...

बहुत खूब

Onkar said...

बहुत सुन्दर रचना