Thursday, November 6, 2014

ये चाँद बीते ज़मानों का आइना होगा...



करोगे याद तो हर बात याद आएगी
गुज़रते वक्त की हर मौज ठहर जाएगी

ये चाँद बीते ज़मानों का आइना होगा
भटकते अब्र में चेहरा कोई बना होगा,
उदास राह कोई दास्ताँ सुनाएगी

बरसता-भीगता मौसम धुआं-धुआं होगा
पिघलती शम्मों पे दिल का मेरे गुमां होगा,
हथेलियों की हिना याद कुछ दिलाएगी

गली के मोड़ पे सूना सा कोई दरवाज़ा
तरसती आँखों से रस्ता किसी का देखेगा,
निगाह दूर तलक जा के लौट आएगी...

-  बशर नवाज़ 

(चाँद पूरणमाशी का, तस्वीर हमारी )

5 comments:

अजय कुमार झा said...

बहुत ही खूबसूरत से अहसास

dr.mahendrag said...

बशर साहब की बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल,जिसे हर समय गुनगुनाने को जी चाहता है

dr.mahendrag said...

बशर साहब की बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल,जिसे हर समय गुनगुनाने को जी चाहता है

Unknown said...

इस हीं ग़ज़ल कहते हैं।
http://savanxxx.blogspot.in

Pratibha Verma said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।