Monday, June 2, 2014

हत्यारे की आंख का आंसू और तुम्हारा चुंबन


सुनो,
बहुत तेज आंधियां हैं
इतनी तेज कि अगर
ये जिस्म को छूकर भी गुजर जाएं
तो जख्मी होना लाजिमी हैं
और वो जिस्मों को ही नहीं
समूची जिंदगियों को छूकर निकल रही हैं
उन्हें निगल रही हैं

ना....रोशनी का एक टुकड़ा भी
धरती तक नहीं पहुंच रहा
सिसकती धरती के आंचल पर सूरज की रोशनी का
एक छींटा भी नहीं गिरता

मायूसियों के पहाड़ ज्यादा बड़े हैं
या जंगल ज्यादा घने कहना मुश्किल है

जिंदगी के पांव में पड़ी बिंवाइयों ने रिस-रिस कर
धरती का सीना लाल कर दिया है
और उम्मीदों की पीठ पर पड़ी दरारें
अब मखमली कुर्ती में छुपती ही नहीं

हत्यारे का जुनून और उसकी आंखों की चमक
बढ़ती ही जा रही है
इन दिनों उसने अपनी आंखों में
आंसू पहनना शुरू कर दिया है
आंसुओं की पीछे वाले आले में वो अपने अट्टहास रखता है
और होठों पर चंद भीगे हुए शब्दों के फाहे
जिन्हें वो अपने खंजर से किये घावों पर
बेशर्मी से रखता है

सुनो, तुम्हें अजीब लगेगा सुनकर
लेकिन कुछ दिनों से भ्रूण हत्याएं
सुखकर लगने लगी हैं
जी चाहता है ताकीद कर दूं तमाम कोखों को
कि मत जनना कोई शिशु जब तक
हत्यारों का अट्टहास विलाप न बन जाए
जब तक रात के अंधेरों में इंसानियत के उजाले न घुल जाएं
बेटियों, तुम सुरक्षित हो मांओं की ख्वाबगाह में ही
तुम्हारी चीखों के जन्म लेने से पहले
तुम्हें मार देने का फैसला, उफफ....

सुनो, तुम तो कहते थे कि हम बर्बर समाज का अंत करेंगे
अंधेरों के आगे उजालों को घुटने नहीं टेकने देंगे

प्रिय, तुम तो कहते थे कि एक रोज यह धरती
हमारे ख्वाबों की ताबीर होगी
हमारी बेटियां ठठाकर मुस्कुराएंगी,,,,
इतनी तेज कि हत्यारे की आंखों के झूठे आंसू झर जायेंगे
और उसके कांपते हाथों से गिर पड़ेंगे हथियार

एक रोज तेज आंधियों के सीने पर हम
उम्मीदों का दिया रोशन करेंगे...
और आंधियां खुद बेकल हो उठेंगी
उस दिये को बचाने के लिए

प्रिय, आज जब हवाओं का रुख इस कदर टेढ़ा है
तुम कहां हो
इस बुरे वक्त में सिर्फ हमारा प्र्रेम ही तो एक उम्मीद है

आओ मेरी हथेलियों को अपनी चौड़ी हथेलियों में ढांप लो
आओ मेरा माथा अपने चुम्बनों से भर दो
तुम्हारा वो चुंबन
इस काले वक्त और भद्दे समाज का प्रतिरोध होगा
तुम्हारा वो चुंबन हत्यारे के अट्टास को पिघलायेगा
वो जिंदगी के पांव की बिंवाइयों का मरहम होगा
और धरती के नम आंचल में रोशनी का टुकड़ा

सुनो, सिर्फ मुझे नहीं
समूची कायनात को तुम्हारा इंतजार है
कहां हो तुम....

1 comment:

dr.mahendrag said...

मन की वेदना को दर्शाती सुन्दर कृति। अब तो लगता है पूरा समाज ही बहरा ,संवेदनहीन हो गया है