Wednesday, July 24, 2013

नींद में इन दिनों ख्वाब नहीं आते...


ख्वाब आजकल आते नहीं आँखों में
कि नींद बहुत आती है

कोई ख्वाब दरवाजे से सर टिकाकर
बैठा है, 
एकदम सटकर
बीती रात के ख्वाब से

कोई ख्वाब बालकनी में जमुहाई ले रहा है
कि तुम आओ,
तुम्हारी हथेलियों में सुबह लिखूं

कोई ख्वाब सिरहाने बैठा है
ये सोचकर कि नींद के किसी हिस्से में तो
उसका भी हिस्सा होगा

सुबह की चाय बनाते वक़्त जो ख्वाब
छोड़ गए थे तुम गैस चूल्हे के पास
और जाकर धंस गए थे बीन बैग के अन्दर
वो ख्वाब एक पानी की बोतल में रख दिया था,
उसमें कल्ले फूटे हैं

कुछ ख्वाब यूँ ही टहलते फिरते हैं घर भर में
कभी भी, कहीं भी टकरा जाते हैं
जैसे तुम टकराते थे, जानबूझकर
बदमाश…कहते-कहते होंठ ठहर जाते हैं 
कोई किताब उठाओ तो उसमें से झरते हैं कुछ ख्वाब
अरे… अरे… गिरते ही जाते हैं ये तो

कमबख्त, कहीं चैन से रहने नहीं देते
कि चलो सो जाती हूँ
नींद में इन दिनों ख्वाब नहीं, 
तुम आते हो… सचमुच।

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जब नींद आती है, तभी प्यारे ख्वाब आते हैं, उसके बाद नींद और गाढ़ी हो जाती है। जब तक नींद नहीं आती है, तब तक तुम्ही आँखों पर चढ़े रहते हो।

yashoda Agrawal said...

शुक्रिया भास्कर
मिलवाने के लिए
सादर

Rahul Paliwal said...

बहुत खूब!

वर्षा said...

बहुत बढ़िया, नींद,ख्वाब,चाय के प्याले..