Thursday, April 18, 2013

हरा...



कुछ जो नहीं बीतता
समूचा बीतने के बाद भी

आमद की आहटें नहीं ढंक पातीं
इंतजार का रेगिस्तान

बाद भीषण बारिशों  के भी
बांझ ही रह जाता है
धरती का कोई कोना

बेवजह हाथ से छूटकर टूट जाता है
चाय का प्याला

सचमुच, क्लोरोफिल का होना
काफी नहीं होता पत्तियों को
हरा रखने के लिए...

4 comments:

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

बेवजह हाथ से छूटकर टूट जाता है
चाय का प्याला

Tamasha-E-Zindagi said...
This comment has been removed by the author.
प्रवीण पाण्डेय said...

हम तो क्लोरोफिल को यह गुण देने वाले को पूजते हैं।

Tamasha-E-Zindagi said...

क्या बात है | बहुत सुन्दर शब्दावली से सजी रचना | आभार | अत्यंत सुन्दर और भावपूर्ण रचना |