Monday, August 6, 2012

एक लायक आदमी इश्क के लायक नहीं बचता...




इश्क को उसने उठाकर जिन्दगी के सबसे ऊंचे वाले आले में रख दिया था. उस आले तक पहुँचने के लिए पहले उसने खुद को पंजों पर उठाया. अपने हाथों को खींचकर लम्बा करना चाहे. इतनी मशक्कत मानो अचानक
उसके पैरों की लम्बाई बढ़ जाएगी, हाथों की लम्बाई भी. इतनी ज्यादा कि उसके बराबर दुनिया में कोई लम्बा ना हो सके...और जिन्दगी के सबसे ऊंचे आले तक कोई कभी ना पहुँच सके. अचानक उसने महसूस किया कि वाकई उसका कद बढ़ने लगा है...उसने अपने इश्क को अपने दिल के रैपर में लपेटकर उस आले में रख दिया. ऊपर से कुछ पुआल भर दिया ताकि उसकी सबसे कीमती चीज़ पर किसी को कोई नजर ही ना पड़े. काम हो जाने के बाद वो वापस अपने कद में लौट आया. यही कोई पांच फुट ग्यारह इंच.

वो हमेशा कहती थी कि 'एक इंच कम क्यों...? पूरे छह क्यों नहीं...' ऐसा कहकर वो अक्सर हंस देती. लड़का उसकी बात सुनते हुए अपने कद की एक इंच कम लम्बाई के बारे में सोचने लगता. लड़की उसकी लम्बी बाँहों में झूलते हुए कहती...'तुम पांच फुट के होते तब भी मुझे तुमसे इतना ही प्यार होता पगले...' लड़का खुश हो जाता. उनका प्रेम किशोर वय का प्रेम था. हालाँकि प्रेम हर उम्र में किशोर वय ही होता है...वे खेतों में दिन भर घूमते. उसे लड़की के लिए सबसे ऊंची डाल पर लगे फूल तोड़ने में सबसे ज्यादा सुख मिलता था.

पापा का उसे आईएएस बनाने का ख्वाब उसे खासा बोरिंग लगता.
गांव के तालाब में कंकड़िया फेंकते हुए उसे इतना सुख मिलता कि उसे लगता जिन्दगी में इससे बड़ा कोई सुख ही नहीं. लड़की उसे हर बार नया निशाना बताती और उसकी कंकड़ी ठीक उसी जगह जा पहुँचती. लड़की खुश होकर नाचने लगती. कई बार अति उत्साह में उसे चूम भी लेती थी. फिर अगले ही पल उसकी आँखें भर आतीं.
वो संकोच में सिमट जाती और अपने कदम पीछे लौटा लाती...लड़का अभिसार के रंग में रंग चुका होता और बहुत प्यार से पूछता, 'क्या हुआ?' लड़की कहती, ' कुछ नहीं'  
'कुछ तो?' वो फिर से पूछता.

लड़की रोने लगती और रोते रोते उसके कन्धों पे टिक जाती. उसका रोना बढ़ता जाता. लड़के को समझ में नहीं आता के प्रेम के सबसे खूबसूरत पलों में लड़की अचानक रोने क्यों लगती है. वो उसे चुप करता रहता...और लड़की रोती जाती. सूरज डूबने को होता और जाते जाते लड़की के कान में कह जाता कि आज कि मुलाकात
का वक़्त ख़त्म हुआ. लड़की आंसूं पोंछती और घर की और भाग जाती. जाने क्यों लड़के को जाते हुए क़दमों में लड़की का आना ही सुनाई देता हमेशा. अपने सीने में बसी लड़की के आंसुओं की खुशबू में वह डूब जाता. वो अकेले ही तालाब के किनारे बैठ जाता और सूरज का डूबना फिर चाँद का उगना देखता रहता. इन दिनों उसे किसी से मिलना, बात करना कुछ भी अच्छा नहीं लगता था. घर देर से पहुँचता और खाने से बचने के लिए तुरंत चादर के भीतर छुप जाता. वो रात भर छत को देखता रहता...छत अचानक आसमान बन जाती और कमरे में पड़ी चारपाई जमीन. वो अपनी बाँहों में लड़की के सर का होना महसूस करता और महसूस करता
कि तारे उतारकर लड़की की मांग में सज जाते...इस वक़्त भी लड़की की आँखों में कोई नदी उफनने को होती. वो यह कभी नहीं समझ पाया कि लड़की आखिर क्यों रो पड़ती है प्रेम के असीम पलों में. लेकिन वो उन आसुंओं को अपनी हथेलियों में समेट लेता.

एक रोज उसने कहा, 'एक दिन तेरे सारे आंसुओं को धरती पर बो दूंगा और प्यार की फसल लहलहाएगी....' लड़की रोते-रोते हंस देती....हर प्रेम कहानी की तरह ये भी एक सामान्य प्रेम कहानी थी. जिसमे लड़के को जाना पड़ा. पापा को और टालना मुश्किल था. उसे शहर जाकर लायक आदमी बनना था.
'इश्क काफी नहीं जिन्दगी के लिए' सोचते हुए उसने भीगी पलकों की गठरी में सारे ख्वाब बांधे और निकाल पड़ा. उसने लड़की को वादा किया वो जल्दी लौटेगा और उसे हमेशा के लिए ले जायेगा. जाते वक़्त उसने अपने इश्क को जिन्दगी के सबसे ऊंचे आले में संभाल के रख दिया. तीन बरस लड़का लायक आदमी बनने में लगा रहा. लौटा तो उसने जिन्दगी के उसी आले को ढूँढा जिसमे उसने अपना इश्क रखा था. अब ना वो दरो-दीवार रहे, ना वो जिन्दगी, ना आला कोई. वो अपने पंजो से उचक-उचक कर जिन्दगी के सारे खानों को तलाशता फिरता...लेकिन उसका ही इश्क अब उसकी पहुँच से बहुत दूर हो गया..बहुत दूर...एक लायक आदमी इश्क के लायक नहीं बचता.... उसने सोचा. अब वो अकेले ही रोता था...अकेले ही तालाबों के किनारों घूमता,
खेतों में वही दिन वही खुशबू ढूंढता. ना जाने कितने बरस बीत गए...वो लायक आदमी अब किसी का पति है
किसी का पिता और किसी का बेटा...उसकी आँखें अक्सर नाम रहती हैं. जिन्दगी ने उसके साथ बेईमानी की. अपने ही इश्क तक उसके हाथ क्यों नहीं पहुँचने दिए...

वो धरती के ना जाने किस कोने में अब सांस लेती होगी. वो क्या अब भी रोती होगी प्यार के पलों में...क्या वो कभी किसी और को प्रेम कर पायेगी...उसे अपनी बाँहों में वही नमी महसूस होती, वही खुशबू...नहीं वो अब कभी नहीं रोती होगी...लड़के की आँखें भीग जतिन तो उसकी पत्नी पूछती 'क्या हुआ?' लड़का कहता 'आँख में कोई तिनका चला गया शायद...' जिन्दगी का तिनका...वो नहीं कह पाता. 

जिन्दगी के सबसे ऊंचे आले में रखा उनका इश्क पूरी दुनिया में अपनी खुशबू बिखेर रहा है.

14 comments:

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

ओह
बहुत सुंदर

प्रवीण पाण्डेय said...

आँसुओं से प्रेम को सिंचित करने से कुछ भी कैसे उगेगा, सब खारा जो हो जायेगा?

kavita verma said...

jindagi ke aale me rakhi ek khobsurat keemati cheez ke na hone ka ehsas jehan me utar aaya..hruday sparshi..

***Punam*** said...

क्या कहूँ.....??
कुछ समझ नहीं पा रही हूँ....!!
मौन ही बेहतर है...!!

Anand Rathore said...

bahut khoobsurat rachna... ek mamuli si kahani hai.. use khas banati hai prem ko samajh aur use shabdon mein sajone ki aapki anuthi kala.

RAHUL SRIVASTAVA said...

वाकई कमाल की पहेली है इश्क...डूबने वाला ही पार उतर पता है..सुंदर

neera said...

जिन्दगी के सबसे ऊंचे आले में रखा उनका इश्क पूरी दुनिया में अपनी खुशबू बिखेर रहा है

इश्क कि यही नियति है!

सुंदर! भावभीनी पोस्ट!

रश्मि प्रभा... said...

इश्क की उंचाई और उचकती एड़ियां ....... बस देख रही हूँ

vandana gupta said...

जिन्दगी का तिनका...वो नहीं कह पाता.

कुछ तिनको को कभी मुकाम नही मिलता ………

Mahi S said...

Beautiful..Mashaallah..

विवेक रस्तोगी said...

मैं तो इश्क के रंगों को देखकर दंग हूँ ।

बाबुषा said...

लड़की ने एक दिन आयफेल टावर पर चढ़ कर सूरज को आवाज़ लगाई और कहा -

"मेरी लम्बाई पांच फीट सात इंच है पर धूप में मेरी देह से छः फीट एक इंच की परछाई निकलती है."

जवाब आया -

"धूप की छाँव में हर दम रहना
फूल की तरह खिली-सी ताउम्र"

उन्हूं ! ऊपर वाला सूरज नहीं ..लड़की के सूरज ने जवाब दिया !

याद आया ढक्कन !

अब इश्क़ के ऊँचे कद के आगे नहीं पढ़ पाए हैं आज..कल फिर आकर पढ़ेंगे..!

प्यार.

Manish said...

क्या बात है.. इश्क करने वाले हमेशा से लुटते रहे हैं..

आनंद said...

जाने क्यों लड़के को जाते हुए क़दमों में लड़की का आना ही सुनाई देता हमेशा. अपने सीने में बसी लड़की के आंसुओं की खुशबू में वह डूब जाता.
.....

वो अपने पंजो से उचक-उचक कर जिन्दगी के सारे खानों को तलाशता फिरता...लेकिन उसका ही इश्क अब उसकी पहुँच से बहुत दूर हो गया..बहुत दूर...एक लायक आदमी इश्क के लायक नहीं बचता.... उसने सोचा. अब वो अकेले ही रोता था...अकेले ही तालाबों के किनारों घूमता, खेतों में वही दिन वही खुशबू ढूंढता.

लोग रुलाने के लिये कथाकार क्यों बन जाते हैं समझ में नहीं आता :)