Friday, June 1, 2012

कर चुके तुम नसीहतें हम को ...


हम तो चलते हैं लो ख़ुदा हाफ़िज़
बुतकदे के बुतों ख़ुदा हाफ़िज़

कर चुके तुम नसीहतें हम को
जाओ बस नासेहो ख़ुदा हाफ़िज़

आज कुछ और तरह पर उन की
सुनते हैं गुफ़्तगू ख़ुदा हाफ़िज़

बर यही है हमेशा ज़ख़्म पे ज़ख़्म
दिल का चाराग़रों ख़ुदा हाफ़िज़

आज है कुछ ज़ियादा बेताबी
दिल-ए-बेताब को ख़ुदा हाफ़िज़

क्यों हिफ़ाज़त हम और की ढूँढें
हर नफ़स जब कि है ख़ुदा हाफ़िज़

चाहे रुख़्सत हो राह-ए-इश्क़ में अक़्ल
ऐ "ज़फ़र" जाने दो ख़ुदा हाफ़िज़

11 comments:

दीपिका रानी said...

बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल पढ़वाई आपने... शुक्रिया

समयचक्र said...

आज है कुछ ज़ियादा बेताबी
दिल-ए-बेताब को ख़ुदा हाफ़िज़


सुन्दर गजल प्रस्तुति...

मेरा मन पंछी सा said...

बहुत बढ़िया गजल...

दिलीप said...

Bahadur shah ki gazlen utni paini nahin thi..par ant samay tak ume ek ajeeb dhaar aati gayi..sajha karne ke liye shukriya

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

सुन्दर कलाम पढवाने हेतु सादर आभार.

Anamikaghatak said...

bahut bahut bahut badhiya..abhar

Anju (Anu) Chaudhary said...

बेहद खूबसूरत शब्दों के आगाज़ के साथ ...अंत भी बेजोड हैं ...

Rajesh Kumari said...

सुन्दर ग़ज़ल पढवाने हेतु हार्दिक आभार प्रतिभा जी

Kailash Sharma said...

बेहतरीन गज़ल पढवाने के लिये आभार...

Darshan Darvesh said...

अच्छी गजल है |

आनंद said...

आज है कुछ ज़ियादा बेताबी
दिल-ए-बेताब को ख़ुदा हाफ़िज़

....

कहते हैं जहर जहर को ही मारता है ...इतनी बेताबी न होती तो आपकी दुनिया में आने का होश ही कहाँ होता !