Sunday, February 26, 2012

चोंच में अटका अंत...


- प्रतिभा कटियार

'फिर क्या हुआ?' चिडिय़ा ने पूछा...
'फिर...?' चिड़ा खामोशी के सिरहाने पर सर टिकाते हुआ बोला...'फिर क्या होना था.'
'अच्छा तुम्हारे हिसाब से क्या होना चाहिए फिर...?' चिड़े ने करवट बदली और कहानी का सिरा चिडिय़ा की चोंच में टांग दिया. घड़ी की सुइयों में जो वक्त था उसे मौसम ने मात दे रखी थी. शाम के चार बजे शाम छह बजे का सा मंजर मालूम होता था. ओस कंधों पर बैठती जा रही थी. शाम की उदासी को चिड़ा अपनी कहानी से तोडऩे की जुगत में था. लेकिन कहानी के अंत तक पहुंचते-पहुंचते उसे लगने लगा कि भीगते हुए मौसम में उसने गलत कहानी का चुनाव कर लिया है. इस कहानी का अंत तो दु:ख की ओर जा रहा है. चिडिय़ा कहानी सुनते-सुनते उदास हो चली है.

चिड़ा कहानी को बदल देना चाहता था. इसलिए उसने कहानी को रोक दिया. चिडिय़ा की आंख से लगातार आंसू बह रहे थे. वो जानना चाहती थी कि आखिर उस किसान की लड़की का हुआ क्या. चिड़े ने जब कहानी का अंत उसके हिस्से में लटकाया तो चिडिय़ा ने चिड़े की तरफ से नजरें घुमा लीं. उसने देखा दूर कहीं झोपड़ से रोशनी की खुशबू आ रही थी. आग जलने के बाद चूल्हे से उठने वाली भीनी-भीनी सी खुशबू. चिडिय़ा को इस खुशबू के साथ ही वो कहानी याद आई, जब उसके ही पूर्वजों ने राजकुमार की भूख मिटाने के लिए आग में कूदकर जान दे दी थी. भावों से भरी चिडिय़ा के मन में भी ऐसा ही ख्याल आया कि वो आग की खुशबू की दिशा में उड़ चले और अपनी जान देकर किसान की बेटी की जिंदगी को बचा सके. लेकिन राजकुमार की भूख पेट की भूख तो थी नहीं. चिडिय़ा ने अपने सर चिड़े के कंधे पर टिका दिया.' फिर क्या हुआ बताओ ना?'
उसने अपनी भीगी सी आवाज में इसरार किया. 

'छोड़ो न फिर कभी ये कहानी पूरी करेंगे. आज तो तुम मेरे लिए कुछ बढिय़ा बनाओ. बड़ी भूख लगी है. ये बरसती ओस के मौसम में मुआ पेट फैलकर जाने कैसे चौड़ा हो जाता है.' चिडिय़ा कुछ भी बनाने के मूड में नहीं थी. 'फिर क्या हुआ बताओ ना?' उसने चिड़े के कंधे पर सर रखे रखे ही कहा.
'तुम नहीं मानोगी?' उसने पूछा.
'ऊंहू...' चिडिय़ा ने ना में सर हिलाया.
'अच्छा वादा करो कहानी का अंत सुनकर रोओगी नहीं.'
'ये वादा मैं नहीं कर सकती.'
'तो मैं कहानी नहीं सुना सकता' चिड़ा भी ऐंठ गया. चिडिय़ा गुस्से में उड़कर दूसरी डाल पर जा बैठी. तिरछी आंखों से चिड़े की ओर देखती रही. चिड़े की जिद से वो वाकिफ थी सो उड़कर वापिस उसी डाल से आ लगी. 'अच्छा चलो नहीं रोऊंगी अब तो बताओ न क्या हुआ.'
'रोओगी नहीं पक्का?' चिड़े ने वादे को पक्का करना चाहा. वो नहीं चाहता था कि अच्छी खासी शाम का मजा किसी कहानी के कारण खराब हो. चिड़ा काफी रोमैन्टिक मूड में था. चिडिय़ा ने जब पक्का वादा किया कि वो नहीं रोएगी तो चिड़े ने कहानी के अंत का सिरा पकड़ा.

फिर राजा ने हुक्म दिया कि उस लड़की को खोज निकाला जाए जिसकी मोहब्बत ने उनके राजकुमार को बर्बाद कर रखा है. जिसकी याद में राजकुमार न खाता है न पीता है. दीवाना हो रखा.
'फिर?' चिडिय़ा ने पूछा.'
'फिर क्या, उस लड़की को पकडऩा राजा के हरकारों के लिए कौन सा मुश्किल काम था. वो लड़की को राजमहल ले आए. राजा और रानी दोनों खुश हुए कि चलो अब राजकुमार खुश हो जायेगा. लड़की डरी सहमी राजा के दरबार में खड़ी थी. जाने क्या गुनाह हुआ उससे, क्या दंड मिलने वाला है.
तभी राजकुमार दरबार में आया और उसने लड़की की ओर देखा. राजकुमार की आंखों में आंसू भर आये...राजा रानी को जो भी समझ में आया उन्होंने राजकुमार का ब्याह उस लड़की से करने का फैसला किया. ब्याह के रोज राजकुमार ने लड़की से पूछा, 'तुम्हारी वो सहेली कहां है, जो उस रोज कुएं पर तुम्हारे साथ पानी भरने आई थी'. लड़की को मामला समझते देर न लगी कि राजकुमार उसके नहीं उसकी दोस्त के प्यार में पागल है. लेकिन उस दोस्त की तो शादी हो चुकी थी.'

 किसान की लड़की समझदार थी. उसने राजकुमार से कहा, 'आप मुझसे शादी कर लीजिए फिर मैं उसके बारे में आपको बताऊंगी.' राजकुमार की उस लड़की से शादी हो गई. राजकुमार रोज उस लड़की के बारे में पूछता और लड़की रोज टाल देती.एक रोज जब राजकुमार ज्यादा ही जिद करने लगा तो लड़की ने कहा, 'एक वादा करिए कि यह जानने के बाद वो लड़की कौन है और कहां है, आप उसे पाने की जिद नहीं करेंगे.' राजकुमार की तृष्णा इतनी बड़ी थी कि उसने झट से 'हां' कह दी. लड़की ने कहा कि 'अगर आपने वादा तोड़ा, तो मैं जलकर राख हो जाऊंगी.' राजकुमार ने कहा, 'मेरा वादा पक्का है.'

लड़की ने राजकुमार को बता दिया कि उसकी सहेली पड़ोस के गांव के एक लड़के को ब्याही है और उसका जीवन सुख से चल रहा है...इतना कहने के बाद चिड़े ने महसूस किया कि ठंड काफी बढ़ गई है सो उसने चिडिय़ा से थोड़ी आग जलाने को कहा. चिडिय़ा को कहानी का अंत जानने की ऐसी जिज्ञासा थी कि वो चिड़े की हर बात झट से मान लेती. आग की तपिश से ठिठुरते पंखों को जरा जुंबिश मिली और चिड़े ने घोसले में  पसरते हुए टांगे सीधी कीं.
चिडिय़ा उसकी ओर देख रही थी.
'फिर क्या, राजकुमार ने अपना वादा तोड़ दिया और उस लड़की को पकड़ लाने के लिए हरकारे भेज दिए. किसान की लड़की ने सारा माजरा राजा को जा सुनाया कि किसी तरह उसकी सहेली की जिंदगी बर्बाद होने से बच सके. राजा उल्टे उस पर नाराज हुआ, 'पागल लड़की जब तुझे पता था कि वो तुझसे नहीं तेरी सहेली से प्यार करता है तो तूने पहले क्यों नहीं बताया. तेरी जिंदगी तो बच जाती.'  'मैंने अपनी जिंदगी अपनी दोस्त और उसके परिवार को बचाने के लिए दांव पर लगाई. लेकिन मालूम होता है कि मेरा ऐसा करना व्यर्थ ही गया.' 'यकीनन'. राजा ने कहा. राजा के हरकारे उस लड़की को राजमहल में ले आये और राजकुमार से उसकी शादी की तैयारियां होने लगीं. शादी वाली रात दोनों सहेलियां मिलीं और खूब रोईं. फिर रोते-रोते दोनों आग में कूद गईं...'.
अब चिड़ा चिडिय़ा की ओर देखने लगा. 'देखो तुमने कहा था कि तुम नहीं रोओगी.' चिड़े ने प्यार से अपने पंखों में चिडिय़ा को समेटते हुए कहा.
'नहीं मैं रो नहीं रही हूं. सोच रही हूं.' चिडिय़ा ने कहा.
'क्या सोच रही हो?'
'यही कि राजकुमार का  प्रेम क्या सचमुच प्रेम था?'
चिड़ा चुप रहा.
'क्या प्रेमी को हासिल करके उस पर अपना कब्जा करना ही प्रेम होता है. नहीं ये प्रेम  कहानी नहीं है.'
चिडिय़ा बोली.
'तो मैंने कब कहा कि ये प्रेम कहानी है. ये एक कहानी है जिसमें प्रेम है.' चिड़े ने स्पष्ट किया.
'नहीं, इसमें प्रेम भी नहीं है. प्रेम होता तो राजकुमार इस तरह हासिल करने की तड़प से न गुजर रहा होता. बल्कि अपने प्रेमी का सुख देखकर सुख महसूस कर रहा होता.'
' चुप रहो, ऐसा कुछ नहीं होता. हम जिसे प्रेम करते हैं, उसे अपने करीब चाहते ही हैं.' चिड़े ने कहा.
'भले ही प्रेमी की मर्जी हो या न हो?' चिडिय़ा को अब गुस्सा आने लगा था. चिड़ा समझ गया था कि शाम की ऐसी-तैसी कर ली है उसने एक गलत कहानी सुनाकर.

'अरे सुनो तो, कहानी का अंत तो अभी बाकी ही है और तुम बीच में ही शुरू हो गईं.'
'अच्छा, मुझे लगा कहानी खत्म हो गई.'  चिड़िया ने कहा.
'नहीं', चिड़ा काफी तेज दिमाग था. उसने झट से कहानी को आगे बढ़ाया और उसे सुखद अंजाम दे डाला.
'फिर राजकुमार ने जब देखा कि दोनों लड़कियों ने आग लगा ली है तो वो भी उस आग में कूद गया. उसने अग्नि से कहा कि हम तीनों में से जिसका प्रेम सच्चा हो उसे बचा लेना. आग की लपटें राजमहल की दीवारें पार करने लगी थीं. राजकुमार और दोनों लड़कियां आग के भीतर थे. राजमहल में चीखो-पुकार मची थी. लेकिन जब आग ठंडी हुई तो लोगों ने देखा कि तीनों लोग जिंदा हैं. किसी का बाल भी बांका नहीं हुआ है.'

'अरे, ये कैसे.' वो नहीं समझ पा रही थी कि चिड़ा कहानी को अब किस तरह उड़ाता फिर रह है.
'फिर?' चिडिय़ा ने उत्सुकतावश पूछा.'
' फिर क्या था तीनों बच गये, यानी तीनों का प्रेम सच्चा था. किसान लड़की का अपनी दोस्त के प्रति, उसकी दोस्त का अपने पति के प्रति और राजकुमार का उस लड़की के प्रति. इसलिए अग्नि ने तीनों को सुरक्षित बचा लिया. राजकुमार को समझ में आ गया कि वो लड़की जिसे वो प्यार करता है वो किसी और के साथ खुश रहेगी इसलिए उसे ढेर सारे उपहारों के साथ विदा किया. अपनी दोस्त के लिए बलिदान देने वाली अपनी पत्नी के प्रेम से राजकुमार मुग्ध हो उठा. राजमहल उनके प्रेम की खुशबू से महकने लगा.'

अब चिड़े ने लंबी सांस ली.
चिडिय़ा की भरी-भरी सी आंखों में मुस्कान उतर आई. वो प्रेम से भर उठी और चिड़े के पंखों में दुबक गई. चिड़ा मन ही मन अपने कौशल पर इतरा रहा था. हालाँकि चिड़िया को पता था कि कहानी तो काफी पहले ही ख़त्म हो चुकी थी...ये अंत तो चिड़े ने जानबूझकर उसकी चोंच में अटकाया है. 

(आज 26 फ़रवरी को जन्संदेश टाइम्स में प्रकाशित थी.) 

10 comments:

Nirantar said...

bahut badhiyaa,achhee lagee rachnaa

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

बहुत प्यारी कहानी ..

pallavi trivedi said...

lovely story....

pallavi trivedi said...

lovely story....

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही सुन्दर और पठनीय कहानी |

जयकृष्ण राय तुषार said...

बहुत ही सुन्दर और पठनीय कहानी |

जयकृष्ण राय तुषार said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Pallavi saxena said...

अच्छी कहानी थी।

आनंद said...

काश ऐसा ही अंत होता हर कहानी का ...चिड़ा की ही तरह सब का कौशल समय पर काम आ सकता ! :)

RITU BANSAL said...

कहानी अच्छी लगी..
धन्यवाद..
kalamdaan.blogspot.in