Monday, February 13, 2012

प्रेम पत्र



प्रेम पत्रों में रौशनी होती है
और एक गहन अंधेरा भी
चमकती हुई पीड़ा होती है
तो पपड़ाए होंठो पर रखी
मुस्कान भी

अठखेलियां होती हैं कहीं
तो उबासियां लेती है गहन उदासी भी
सहराओं में साहिलों की तलाश
होती है प्रेम पत्रों में
और चांद तारों को ठुकरा देने की
चाह भी कम नहीं होती

पड़ोसी की बातें खूब विस्तार से
सहेली के किस्से भी पूरे प्यार से
सहेली के प्रेमी का जुगराफिया
और उसका विश्लेषण पूरा
हां, बस अपना ही किस्सा अधूरा...

लिखी होती है
देर रात बिल्लियों की रोती हुई
आवाजों में लिपटी दु:खद
आगत की आशंका
साथ ही देश के हालात की चिंता भी
नयी दुनिया बनाने का सपना होता है
तो ख्वाब
किसी की दुनिया बन जाने का भी

वो जो खबर थी न अख़बार में
प्रेमियों की हत्या वाली
उससे दहल भी गया है प्रेम पत्र
ताकीद है पढ़कर फाड़ देने की

वादा एक-दूसरे का नाम भी न लेने का
हिदायत अपना ख्याल रखने की
और भूल जाने की उन आँखों को
जिन्हें देखे जमाना हुआ...

दूर देश के मौसम को टटोलते हुए
खींचकर उसे ओढ़ लेने की हसरत
नहीं लिखी है प्रेम पत्र में
बचपन के किस्सों में न जाने कब
जुड़ गया था तुम्हारा भी हिस्सा
रह गया यह जिक्र आते-आते

आंखों में न जाने क्यों
सीलन सी रहती है इन दिनों
बड़े दिन हुए मन की मरम्मत कराये
लिखते-लिखते रुक गये थे हाथ
कांपते हाथों ने बस इतना लिखा था
वो लगाया था न जो पौधा पिछले महीने
तुम्हें लिखा था, जिसके बारे में
आज फूल आया है उसमें...

लिखा है प्रेम पत्र में यह भी
सुनो, आज सपने में
मैंने चट्टान को रोते देखा
देखा लोहे को पिघलते हुए
बंदूक की मुहाने पर
एक फूल रखा देखा
बंजर जमीन पर अश्कों को
लहलहाते देखा...

लिखा है प्रेम पत्र में कि
इन दिनों कलेजा छलनी नहीं होता
किसी तलवार से
न जाने कैसे छूट गया लिखना कि
मेरे दु:ख को मत छूना
वर्ना कट जायेगा तुम्हारा हाथ
प्रेम पत्रों में लिखा होता है सब कुछ
बस नहीं लिखा होता है प्रेम

क्योंकि प्रेम लिखने से पहले
एक मौन की नदी गुजरती है
और बहा ले जाती है समूचा पत्र
लौट आते हैं प्रेमी अपनी ही दुनिया में
जुट जाते हैं कोशिश में
खुद के खांचे में फिट होने की...
अधूरे ही रह जाते हैं प्रेम पत्र अक्सर
जैसे अधूरी रह जाती हैं प्रेम की दास्तानें...

( दैनिक जागरण में आज १३ फ़रवरी को प्रकाशित)

13 comments:

Nidhi said...

त्रासदी यही है कि ...अच्छी चीज़ें अक्सर अधूरी ही रह जाती हैं.....

अनुपमा पाठक said...

एक मौन की नदी गुजरती है
और बहा ले जाती है समूचा पत्र
अधूरा ही रह जाता है... प्रेम का अंकन प्रेम की तरह... जिस तरह आधा ही होता है चाँद अक्सर वैसे ही आधी अधूरी ही रह जाती हैं अभिव्यक्तियाँ... जिसे पूरा कर सकता है तो केवल मौन 'गर नदी बन कर बहा न ले जाए सब... बस ठहर जाए और व्यक्त होने दे मौन में मौन को... प्रेम मौन ही तो होता है!!!

बेहद सुन्दर!

Rajesh Kumari said...

dil ke sundar bhaavon ko ukera hai kavita me.bahut khoob.

Tulika Sharma said...

अधूरे ही रह जाते हैं प्रेम पत्र अक्सर
जैसे अधूरी रह जाती हैं प्रेम की दास्तानें...
अधूरेपन की एक पूरी दास्तान ......लेखक को बधाई

***Punam*** said...

मुबारक हो प्रतिभा....
आपकी ये रचना आज ही सुबह मैंने 'दैनिक-जागरण' में पढ़ी.....!

"मेरे दु:ख को मत छूना
वर्ना कट जायेगा तुम्हारा हाथ
प्रेम पत्रों में लिखा होता है सब कुछ
बस नहीं लिखा होता है प्रेम"

अक्सर ऐसे ही होते थे (हैं) प्रेम पत्र...
जिसमें 'प्रेम' के अलावा सब लिखा जाता था(है)..!
न जाने कितनी भूली-बिसरी यादें
बिना दस्तक दिए जेहन में एकाएक घुस गयीं !
एक अजीब सा जुड़ाव पाती हूँ खुद का
आपकी सभी रचनाओं से....!!
आपको पढ़ने के बाद हमेशा ही कहीं खो देना पड़ता है खुद को कुछ देर के लिए...
क्यूँ ...?? पता नहीं...??
और शायद पता भी है..............

Pratibha Katiyar said...

पूनम जी, दिल से दिल को राह होती है इतना ही कह सकती हूँ...स्नेह बनाये रखिये बस.
तूलिका तुम्हें क्या कहूं...तुम बस प्यार कहने से खुश होती हो....बहुत प्यार...!
निधि, अनुपमा जी और राजेश जी...हमने दिल की बात कही थी आपको अच्छी लगी तो कविता हो गई....

प्रवीण पाण्डेय said...

संभावनाओं के न जाने कितने बिखरे अंश छिपे रहते हैं, प्रेम पत्र में..

Swapnrang said...

लिखा है प्रेम पत्र में कि
इन दिनों कलेजा छलनी नहीं होता
किसी तलवार से
न जाने कैसे छूट गया लिखना कि
मेरे दु:ख को मत छूना
वर्ना कट जायेगा तुम्हारा हाथ
प्रेम पत्रों में लिखा होता है सब कुछ
बस नहीं लिखा होता है प्रेम ......sach hai

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

क्योंकि प्रेम लिखने से पहले, एक मौन की नदी गुजरती है ..मैं इस वाक्य में बहुत कुछ ढूंढ रहा हूं। मैं इसे जाने कितने अर्थों में लिपटी कविता कहूंगा। हर एक पाठक अपने तरीके से अर्थ निकाल सकता है। शुक्रिया।

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह ...एक अनूठी पेशकश ..जहाँ इस में प्रेम कि अभिव्यक्ति हैं वही दर्द भी हैं ...और अधूरे सपने भी ....जिंदगी से सच का सामना भी ....बहुत खूब

वाणी गीत said...

अधूरे रह जाते हैं प्रेमपत्र अक्सर जैसे अधूरी दास्तानें !
प्रेम का तो पहला अक्षर ही अधूरा है , पूरा कैसे होगा !
भावनात्मक प्रस्तुति !

दीपिका रानी said...

सही है। आजकल प्रेम पत्रों में (अगर कोई लिखता भी हो, या यूं कहें प्रेम ई-मेलों या प्रेम एसएमएस) में सब कुछ होता है, बस प्रेम ही नहीं होता। क्योंकि प्रेम तो एक ऐसा एहसास है जो लफ्जों में बयां नहीं होता.. सुंदर कविता प्रतिभा जी

आनंद said...

लिखा है प्रेम पत्र में कि
इन दिनों कलेजा छलनी नहीं होता
किसी तलवार से
न जाने कैसे छूट गया लिखना कि
मेरे दु:ख को मत छूना
वर्ना कट जायेगा तुम्हारा हाथ
प्रेम पत्रों में लिखा होता है सब कुछ
बस नहीं लिखा होता है प्रेम ...
...
बहुत कुछ छूटा ही रहता है ...मेरे दुःख को चुपचाप सोने दो ...वो जगा तो मुझे यकीन है दुनिया जल जायेगी !
जब भी उदास होने का मन करे ...तो कम से एक और दुनिया है जहाँ आया जा सकता है ..और सुकून से बैठ कर रो लिया जा सकता है.