Thursday, December 1, 2011

कोई प्यार काफी नहीं होता उम्र भर के लिए



'बीत जाएगी दुःख की रात
दर्द कम हो ही जाता है सबका
एक न एक दिन,
धीरे-धीरे कम होती जाएगी याद.
खामोश काली रातों में
नहीं चमकेंगी किसी की आँखें,
एक दिन आ जायेगा जीना
मेरे बिन,
यकीन मानो कोई प्यार
काफी नहीं होता उम्र भर के लिए'
इतना कहके उसने पीठ घुमाई थी
उसकी पीठ अब तक
आँखों से ओझल नहीं हुई
क्या उसको भी
अपनी पीठ पर कुछ नमी लगती होगी?

26 comments:

Abhishek Ojha said...

और पढ़ते ही मुझे लगा - 'वक्त कभी काफी नहीं होता प्यार के लिए' बड़ी पैराड़ोक्सिकल टाइप की चीज है ये प्यार भी :)

बाबुषा said...

प्यार का एक लम्हा काफी है एक उम्र के लिए .. यकीन मानो..तभी तो नमी बनी हुयी है ....
एक लम्हा.....एक लम्हा...एक लम्हा...
झांको न ज़रा ..देखो कितनी ज़िन्दगी छिपी हुयी है उसमें ?
और हाँ , किसी के पीठ घुमाने से नहीं घूमता प्रेम !
अजीब तरह के कोण है इसके..

Pratibha Katiyar said...

@ Baabusha- तो क्यों लिखा था गुलज़ार साब ने, 'तुम गए सब गया कोई अपनी ही मिटटी तले दब गया...' सचमुच प्रेम के कई कोड़ होते हैं.किसी के पीठ घुमाने से नहीं घूमता प्रेम.अगर घूमता होता तो अच्छा होता न?

Anonymous said...

PYAR TO HONA HI THA.

@ UDAY TAMHANEY.

प्रवीण पाण्डेय said...

प्यार न जाने क्या माँगे है,
दिल माँगे, ये जां माँगे है।

बाबुषा said...

@ Gudiya, और क्या मिट्टी तले दब के मर गया प्यार ?
ज़िंदा क्यों न रहा ?
क्यों उस मिट्टी पर गुलाब न खिले ?
क्यों चिड़ियों ने वहाँ गीत नहीं गाये ?
गज़ब मुर्दा प्यार था कि बस वो गए और ये मिट्टी तले दब गए !
जिस दिन हम मिट्टी ओढ़ के सोएंगे..वहाँ तो तुम अक्सर आया जाया ही करोगी ..
फूल मत लाया करना कि वहाँ तो हमेशा फूल खिले ही होंगे ...
ये बाबुषा का प्यार है ..कोई गुलज़ार सा'ब का नहीं कि मिट्टी तले दब गए...
बढ़िया गार्डन मिलेगा तुमको वहाँ ..म्यूजिक व्यूजिक का भी इंतजाम रहेगा ..
अपन तो नीचे ही लेटे लेटे सुनेंगे - आजा तुझको पुकारे मेरे ..................

Swapnrang said...

अभी तक त्रिकोण सुना था.तुम दोनों.मिल के षत कोण बना लो तब तो कम नहीं होगा न......

Pratibha Katiyar said...
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Pratibha Katiyar said...

@ Baabu- हम तो जलकर खाक होंगे और पूरी धरती पर राख बनकर बिखर जायेंगे. कभी धान की बालियों में मुस्कुराएंगे तो कभी हवाओं के साथ संगीत बनकर गूंजेंगे. तुम्हारी कब्र पर जो फूल खिलेंगे उसकी जड़ों समाकर तुम्हारे पास खुशबू बनकर मंडराती रहूंगी.

Pratibha Katiyar said...
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बाबुषा said...

लो ! एक इन्ही की कमी थी महफ़िल में ! ये भी आ गयीं ! आइये मोहतरमा..कोण वोण छोडो यार ..अब अपन एक गोला बनाते हैं और ' गोल गोल रानी इत्ता इत्ता पानी' खेलते है . :-) :-)

बाबुषा said...

अरे हाँ खाला ! माने जिन्न बनके चिपकी रहोगी...मर के भी पीछा न छोडोगी ! सही है बेट्टा !

बस फिर किसी की पीठ देख के कविता लिखना छोडो और हमारी कब्र के बारे में कविता लिखो...यकीन मानो..वो कब्र न होगी ..वहाँ तो ज़िन्दगी जलसा हुआ करेगा :-)

लिखो न कुछ..ज़िन्दगी के जलसे पर ?

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर,
क्या कहने

सागर said...

khubsurat bhaavo ki behtreen abhivaykti....

Ajay Garg said...

@प्रतिभा, आप लोगों की नोक-झोंक पे एक शे'र अर्ज़ है....

सोचो तो हदे-मोहब्बत की कोई और निशानी क्या होगी
ग़म दुनियाभर के सहता है वो कब्र पे मेरी रहता है

पूरी ग़ज़ल तो पिछले साल सुनायी थी शायद तुम्हें... दोबारा सुननी हो तो बता देना, मुझे श्रोता आजकल कम ही मिल रहे हैं :)

Pratibha Katiyar said...

@ Ajay- वो ग़ज़ल पूरी भेज दीजिये. रिवीजन हो जायेगा.

Maheshwari kaneri said...

प्यार तो एक अहसास है .किसी के पीठ धुमाने से कम या खत्म नही होता..इसके लिए तो एक लम्हा ही काफी है.. सुन्दर अभिव्यक्ति...

Anonymous said...

ROOH SE MAHSOOS KARO
NOOR KI BOOND HAI


BAHA KARTI HAI

UDAY TAMHANEY

Ajay Kumar Cretive Graphic/Web & Flash Designer said...

तू किसी की खातिर मुझे भूल भी गए तो कोई बात नहीं ,
मै भी तो भूल गया था सारा ज़माना तेरी खातिर ........

सुनीता शानू said...

नमस्कार मित्र आईये बात करें कुछ बदलते रिश्तों की आज कीनई पुरानी हलचल पर इंतजार है आपके आने का
सादर
सुनीता शानू

vandana gupta said...

क्या उसको भी
अपनी पीठ पर कुछ नमी लगती होगी?

खुरदरे पथरीले रास्ते नमी के मोहताज़ नही होते ………

Onkar said...

Wah, bahut sundar likha aapne.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

उसकी पीठ अब तक
आँखों से ओझल नहीं हुई
क्या उसको भी
अपनी पीठ पर कुछ नमी लगती होगी?

संवेदनशील रचना...
सादर..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

प्रतिभा जी,..संवेदन शील खुबशुरत रचना,..बधाई

मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....
सब कुछ जनता जान गई ,इनके कर्म उजागर है
चुल्लू भर जनता के हिस्से,इनके हिस्से सागर है,
छल का सूरज डूबेगा , नई रौशनी आयेगी
अंधियारे बाटें है तुमने, जनता सबक सिखायेगी,

पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

Mamta Bajpai said...

प्रतिभा जी आपको पहली बार पढ़ रही हूँ बहुत सुन्दर लिखा है आपने ..किसी के पीठ फेरने से प्यार खत्म नहीं होता ..यादों मे बस जाता है

Anoop Dwivedi said...

Didi meine aapki kavita padhi mujhe aapki kavita bahut achhi lagi

"kya wo bhi apni peeth pr nmi mahsus krta hoga" ia a very nice line. kyu k ye line ek aisa Question hei jiska jawab nahi diya ja skta only mahsus kiya ja skta hei.
shayad ye nmi kisi na kisi roop me hamesha jinda rhti hei.
i think so...........

-galti se kuch galat likh diya ho to aap se maafi chahunga.......
your stupid naughty brother - Anoop dwivedi