Tuesday, October 11, 2011

उस आवाज के सजदे में झुकी झुकी है नज़र...


- प्रतिभा कटियार 
जिस मुलाकात का आगाज़ आवाज से शुरू हुआ हो, वो मुलाकात हमेशा ताजा रहती है. जगजीत सिंह ऐसी ही आवाज हैं (मैं उन्हें थे नहीं कहूँगी क्योंकि उनकी आवाज हमेशा हमेशा हमारे पास रहेगी). मेरी उम्र कोई सत्रह अठारह वर्ष की रही होगी. वो हमारे शहर में मेहमान थे. ताज होटल के कॉरिडोर में मीडिया उन्हें घेरने की कोशिश में था और मैं उस घेरे के बीच से निकल भागी थी. उन्हें देखा तो, देखती रह गयी. मानो कोई ख्वाब देखा हो रु-ब-रु. उन्होंने खुद पास बुलाया, 'किसे ढूंढ रही हो..?' उन्होंने पूछा. मेरी आवाज़ गले में अटकी थी. वो मुस्कुराये और सर पर हाथ फिरा दिया. वो ख्वाब सच में जी उठा. वो खूबसूरत दिन मेरी स्म्रतियों की गुल्लक में जमा हो गया.
इसके बाद मीडिया के लिए इंटरविव लेने के लिए तो कभी अपनी गुल्लक को भरने के लिए मुलकातें होती रहीं. रात-रात भर उनकी आवाज के साए में बैठने की हसरत इतनी बड़ी होती थी कि घर जल्दी लौटने की सारी हिदायतें न जाने कहाँ गुम हो जाती थीं. 

मैंने हमेशा उनमें एक प्यार भरा इन्सान देखा. उनकी आवाज़ में ये मिठास दरअसल उसी नेकी के सोते से फूटती थी. फोर्मल इंटरवीय के बाद हमारी जो बात होती थी दरअसल वही खास होती थी. अपने कमरे में बिखरे हुए सामान के बीच कभी कुरता, कभी, घडी तलाशते हुए उन्हें फ़िक्र रहती कि मैं चाय क्यों नहीं पी रही हूँ. वो अपने साथी कलाकारों का परिचय ज़रूर करते थे. जो साथी दूसरे कमरों में होते थे उन्हें बुलवाकर मिलवाते. उनकी खासियत से परिचय कराते. एक रोज बातों बातों में दर्द कि वो गांठ भी खुली थी जो दिल के किसी गहरे कोने में उन्होंने छुपा रखी थी. काश कि जिन्दगी का पहिया एक बार लौटा लेने कि इज़ाज़त होती या बीते हुए लम्हों में से कोई एक चुन पाने की...इसके बाद एक गहरी ख़ामोशी हमारे बीच पसर गयी थी जिसे उन्होंने अपने एक पंजाबी टप्पा गुनगुनाते हुए तोडा था.

हाल ही में निदा फाजली साब लखनऊ में थे. उनसे लम्बी बातचीत हुई थी कविता, नई कविता और कविता की समझ को लेकर. इस बीच जगजीत सिंह का जिक्र भी आया. निदा साब मुस्कुराये, मेरी गजलों को तो जगजीत ने मकबूल किया, वरना मुझे इतने लोग नहीं जानते. कई लोग ऐसे मिलते हैं जो मेरी गजलों को जगजीत की आवाज़ की मार्फ़त जानते हैं. मैं कहता हूँ जगजीत से यार तुने मेरी गजलें हड़प लीं लेकिन सच तो ये है कि उसने मेरी गजलों को उन दिलों में पैबस्त किया जो शायद किताबों या मुशायरों की दुनिया से दूर रहते हैं. उस खूबसूरत सी मुलाकात में जगजीत सिंह चुपचाप शामिल हो गए थे और शरारत से मुस्कुरा रहे थे. 
मेरी जब भी किसी शायर से (चाहे वो बशीर साब हों, जावेद साब या गुलज़ार साब ) बात की या मुलाकात की हर मुलाकात में, हर बात में वो शामिल रहे. और पूरी शिद्दत से शामिल रहे. मानो जगजीत जी के जिक्र के बगैर हर मुलाकात, हर बात अधूरी ही थी. गुलज़ार साब ने मिर्जा ग़ालिब धारावाहिक बनाकर ग़ालिब को हमारे दिलों में रोप दिया. बिना जगजीत सिंह की आवाज के ये कैसे मुमकिन होता भला. नसीर साब भी मिर्ज़ा ग़ालिब को अपने अलग से दर्ज अनुभवों में शामिल करते हैं बज़रिये जगजीत सिंह. 

जगजीत सिंह की आवाज़ की उंगली पकड़कर न जाने कितने लोगों ने गजल की दुनिया में प्रवेश किया. जिन लोगों के लिए गजल किसी कठिन पहेली सी हुआ करती थी वो 'कल चौदहवी की रात थी शब भर रहा चर्चा तेरा' पर झूमने लगे. स्टेज पर वो इतने कमाल के फनकार होते थे कि मजाल है सुनने वाले जरा हिल भी जाये.  'सब जीता किये मुझसे मैं हरदम ही हारा...तुम हार के दिल अपना मेरी जीत अमर कर दो...' इस जीत को अमर करने के दरम्यान इतनी खूबसूरत हरकतें होती थीं कि हम कैसेट में सुने गानों को भूल जाते थे.  उनसे बातचीत के दौरान मैंने कभी दर्द के सुर नहीं छेड़े लेकिन एक बार भीगी आँखों से देखते हुए उन्होंने कहा था 'कभी चित्रा को लेकर आऊँगा तो लखनऊ घुमाओगी न उसे?' मैं उनके इस सवाल का जवाब अपनी भीगी आँखों से ही दे पाई थी. ये ज़र्रानवाज़ी ही तो थी, इसका जवाब कोई क्या दे. उनकी ऐसी  तमाम बातें पहले  से जीते हुए दिल को बार-बार जीत लेती थीं. वो दिन नहीं आया जब वो चित्रा जी को लेकर आते और मैं उन्हें घुमा पाती हालाँकि उनके दिल में, उनकी नम आँखों में चित्रा जी मुझे हमेशा ही नज़र आयीं.    

एक रोज मैंने उनसे पूछा था कि 'आपको पता भी है लोग क्या कहते हैं.' उन्होंने मुस्कुराते हुए पूछा 'क्या कहते हैं?' 'यही कि जगजीत सिंह को गुस्सा बहुत आता है.' मैंने कहा. 'अच्छा? ये तो बहुत अच्छी बात है न? वरना लोग यही कहते रहते कि जगजीत को गाना ही आता है, बस.' ऐसे खुशमिजाज़ कि हर सवाल औंधे मुह गिर पड़े. 
 उन्हें घोड़ों का बहुत शौक था. रेसकोर्स उनकी पसंदीदा जगह हुआ करती थी वक़्त बिताने के लिए. चित्रा जी के लिए रसोई में कुछ बनाना कभी, तो कभी चुटकुलों की महफ़िल सजाना. ध्रुपद और ठुमरी हो या पंजाबी टप्पे वो लोगों के दिलों में उतर जाना और अपना स्थायी निवास बनाना जानते थे. लारा लप्पा...लारा लप्पा हो या चरखा मेरा रंगला...या फिर हे राम..हे राम...तू ही माता तू ही पिता है..तू ही राधा का श्याम हे राम हे राम...जगजीत सिंह हर किसी के दिल के भीतर जाने के सारे चोर दरवाजों से वाकिफ थे. यही वजह है कि उनके जाने की खबर से हर दिल भर आया है, हर आँख नम है. बेहद हंसमुख, जिन्दगी से भरपूर, खुशियाँ बिखेरने वाले जगजीत सिंह ने अपने सीने के दर्द को चुपके चुपके जिया. ब्रेन हेमब्रेज  को भी शायद उन्होंने अपनी गायकी का कायल कर लिया और वो उन्हें छोड़कर नहीं अपने साथ लेकर गया. दुनिया भर में उनके चाहने वालों की नम आँखें आज इस आवाज़ के सजदे में हैं...

(प्रभात खबर के सम्पादकीय पेज पर ११ अक्टूबर को प्रकाशित )

7 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

इस दिल को लगा कर ठेस...

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

.


मैं भी उनके लिए कभी 'थे' नहीं कह सकता…
उनकी आवाज हमेशा हमेशा हमारे पास रहेगी

इन दिनों हरिगीतिका छंद पर कार्य चल रहा है …
जगजीत सिंह जी के लिए भी भावांजलि इसी छंद में -

जग जीतने की चाह ले’कर लोग सब आते यहां !
जगजीत ज्यों जग जीत कर जग से गए कितने कहां ?
जग जीतने वाले हुनर गुण से जिए तब नाम है !
क्या ख़ूब फ़न से जी गए जगजीत सिंह सलाम है !!



-राजेन्द्र स्वर्णकार

smilekapoor said...

प्रतिभा जी, आप शायद उन कुछ खाश लोगों में हो जिनकी मुलाक़ात जगजीत सिंह जी से हुई .
बोहोतों के अरमान तो बस यूँ ही चले गए उनसे मिलने के....मगर मैं तो उनसे हर शाम मिलता हूँ..
हर वीकेंड की सुबह मिलता हूँ...उनको करीब से सुनता हूँ..महसूस करता हूँ..
वो वाकई हजारों में एक रहेंगे....उनके लाइव कंसर्ट्स के क्या कहने...जब भी सुनु तो एक गज़ब की जिंदादिली मिली...
ग़ज़लों के बीच चुटकुले...हशी की फुहार...
'मेरे जैसे हो जाओगे जब इश्क तुम्हे हो जाएगा..' जब भी सुनता हूँ तो मुहब्बत की उन मखमली यादों में कहीं दूर चला जाता हूँ..
उनकी आवाज़ का ये जादू ही था जो संजीदा से संजीदा ग़ज़लों को भी बड़ी सिद्दत से सुना पाए...
उनकी आवाज़ की नेमत हमे जिंदगी में हमेशा रहेगी...
धन्यवाद,
रणजीत

smilekapoor said...

प्रतिभा जी, आप शायद उन कुछ खाश लोगों में हो जिनकी मुलाक़ात जगजीत सिंह जी से हुई .
बोहोतों के अरमान तो बस यूँ ही चले गए उनसे मिलने के....मगर मैं तो उनसे हर शाम मिलता हूँ..
हर वीकेंड की सुबह मिलता हूँ...उनको करीब से सुनता हूँ..महसूस करता हूँ..
वो वाकई हजारों में एक रहेंगे....उनके लाइव कंसर्ट्स के क्या कहने...जब भी सुनु तो एक गज़ब की जिंदादिली मिली...
ग़ज़लों के बीच चुटकुले...हशी की फुहार...
'मेरे जैसे हो जाओगे जब इश्क तुम्हे हो जाएगा..' जब भी सुनता हूँ तो मुहब्बत की उन मखमली यादों में कहीं दूर चला जाता हूँ..
उनकी आवाज़ का ये जादू ही था जो संजीदा से संजीदा ग़ज़लों को भी बड़ी सिद्दत से सुना पाए...
उनकी आवाज़ की नेमत हमे जिंदगी में हमेशा रहेगी...
धन्यवाद,
रणजीत

rohit said...

सचमुच जगजीत जी की यादों को भुला पाना आसान नहीं होगा । अपनी आवाज के माध्यम से वे हमेंशा हमारे दिलों में जिंदा रहेंगे । उन्हे श्रदांजलि ।

Unknown said...

जगजीत को जीते जि देखना किस्मत थि और जाते हुवे देखन बद्किस्मति.......................अल्लह का इन्साफ़ देखिये जीते जि उन्हे गम दिय और उन्के जते हि हमे गम्ज़दा कर दिय

आनंद said...

जगजीत सिंह जी हमेशा हैं हमारे बीच | और आपका ये संस्मरण उनका व्यक्तित्व और मुकम्मल कर गया मेरे दिल में !