Tuesday, September 27, 2011

कभी यूँ भी तो हो...


कभी यूँ भी तो हो 
दरिया का साहिल हो 
पूरे चाँद की रात हो 
और तुम आओ...

परियों की महफ़िल हो 
कोई तुम्हारी बात हो
और तुम आओ..

ये नर्म मुलायम ठंडी हवाएं
जब घर से तुम्हारे गुजरें
तुम्हारी खुशबू चुराएँ 
मेरे घर ले आयें...
और तुम आओ.

सूनी हर महफ़िल हो
कोई न मेरे साथ हो 
और तुम आओ.

ये बदल ऐसे टूट के बरसें
मेरी तरह मिलने को 
तुम्हारा दिल भी तरसे 
तुम निकलो घर से 
और तुम आओ...

तन्हाई हो दिल हो
बूँदें हो बरसात हो 
और तुम आओ.

दरिया का साहिल हो
पूरे चाँद की रात हो 
और तुम आओ..
कभी यूँ भी तो हो...
- जावेद अख्तर
 (एल्बम -सिलसिले )

13 comments:

अजय कुमार झा said...

और तुम आओ ..........पूरे कायनात की खुशी के बाद भी तुम्हारे आने का इंतज़ार ..उफ़्फ़ इंतहा है इंतहा

संजय भास्‍कर said...

उम्दा सोच
भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।

बाबुषा said...

AB itna bula hi rahi ho to aa jaate hain ! :-)

I m serious.. S.Sc exhibition ka national Lucknow mein hai.. Lagta hai Matkul singh ne dil se bulaaya tha maasi ko..! :-)

Rangnath Singh said...

ये गज़ल मुझे बहुत-बहुत पसंद है :-)

Pratibha Katiyar said...

@Baabusha- मटकुल सिंह बहुत खुश हैं...लखनऊ वालों सुन लो क़यामत आने को है...:-)

मनोज पटेल said...

कभी यूँ भी तो हो...

नीरज गोस्वामी said...

इसे जब जब सुना है कुछ कुछ होता है...जगजीत जी ने अपने गायन से जान डाल दी है इस नज़्म में...

नीरज

प्रवीण पाण्डेय said...

अहा, बेहतरीन।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...





आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार

फ़िरदौस ख़ान said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है...

रेखा said...

वाह ...बहुत खूब

अनामिका की सदायें ...... said...

kuchh jyada nahi maang rahi ho ?

ha.ha.ha.

sunder prastuti.

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत बढिया
क्या कहने