Sunday, September 11, 2011

रात की हथेली पर याद के फूल


रात की हथेली पर
रखे थे कुछ सफेद फूल
सीने में 
धड़कती थी एक याद
आंखों में
लहराती थीं 
गंगा, जमुना, नर्मदा
टेम्स, वोल्गा और 
भी न जाने कितनी नदियां
हर याद के नाम पर 
वो नदियों में बहाती थी
कुछ फूल.
लेकिन रात की हथेली 
खाली होती ही न थी
नदियां जरूर 
सफेद फूलों से 
टिमटिमाने लगीं
जितने फूल आसमान में थे
उतने ही नदियों में 
न याद खत्म होती 
न रात की हथेली खाली होती
ये याद की रात के संग
आंख-मिचौली का खेल है.

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जाने कितनी दूरी थी
कि उम्र भर का सफर
भी कम ही पड़ा,
जाने कितनी नजदीकी थी 
कि हर पल में 
हजार बार मिले भी,
इश्क की इबारत में
ये उलटफेर भी 
कमाल होते हैं...

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इश्क ने बुतों में 
सांसे फूकीं
वर्ना मरे हुए जिस्मों को
कौन जिला सकता है.
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8 comments:

रश्मि प्रभा... said...

जाने कितनी दूरी थी
कि उम्र भर का सफर
भी कम ही पड़ा,
जाने कितनी नजदीकी थी
कि हर पल में
हजार बार मिले भी,
इश्क की इबारत में
ये उलटफेर भी
कमाल होते हैं...aur hain kamaal ke ehsaas aur unka prastutikaran

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

जितने फूल आसमान में थे
उतने ही नदियों में
न याद खत्म होती
न रात की हथेली खाली होती...

बहुत ही खुबसूरत लेखन...
सादर....

vandana gupta said...

इश्क ने बुतों में
सांसे फूकीं
वर्ना मरे हुए जिस्मों को
कौन जिला सकता है.

teeno hii prabhavshali aur dil me utar jane wali kshnikayein........behatreen .

प्रवीण पाण्डेय said...

तीनों ही अपने आप में परिपूर्ण, यादें आँखमिचौनी हैं।

Nidhi said...

इश्क के समीकरण इश्क ही जाने !!

Unknown said...

भावनाओं से ओतप्रोत एक सार्थक काव्य

Incognito Thoughtless said...

तुम्‍हारी कविता पर टिप्‍पणी के लिए शब्‍द खोज रही हूं.....।
मौन में जाने के बाद लौटना और कहन सुनन के मसले में पड़ना खासी मशक्‍कत करवाता है।



कभी कभी कोई आपकी अपनी अनुभूति को कुछ ऐसे कह जाता है कि आप सहमति के दो शब्‍द भी नहीं बोल पाते.....।

Incognito Thoughtless said...

मैं तुम्‍हारे शब्‍दों से आगे तुम्‍हारे एहसास तक पहुंच गयी हूं.....


इसे लिखते वक्‍त तुम क्‍या महसूस कर रही होगी....मैं महसूस कर सकती हूं....।