Sunday, July 24, 2011

रिल्के, मरीना और एक सिलसिला - 9

वो हवा का कोई झोंका ही रहा होगा शायद जिसने एक मरती हुई आत्मा में प्राण फूंके होंगे. मरीना के पतझर से झरते उदास जीवन में रिल्के के खत, उनकी कविताएं और यह तोहफा जिसमें उन्होंने अपनी कविताओं की प्रेरणा मरीना को बताया था, मरी हुई देह को ऑक्सीजन की तरह मिले थे. मरीना हवाओं के सुरों पर नृत्य करती थी और खूब खुश रहने लगी थी. बच्चों पर अब वह ज्यादा ध्यान देने लगी थी. कविताओं में एक अलग किस्म की ताजगी का अनुभव कर रही थी. अरे हां, इस सबके बीच वो बोरिस को एक पल के लिए भी नहीं भूली थी. वो उसे अब भी लंबे-लंबे पत्र लिखती थी, जिसमें उसके जीवन से जुड़ी तमाम बातें होती थी. उन स्मृतियों का जिक्र होता था, जिनमें वे दोनों साथ थे. मास्को के लिए उसका प्यार और उससे बिछुडऩे की वेदना होती थी. रिल्के और मरीना के संवाद पत्रों के जरिये बढ़े जरूर लेकिन बोरिस से कम भी नहीं हुए. यह एक कला है शायद एक को खोये बिना दूसरे को साधे रहना...रिल्के और मरीना इस कला को कितना साध पाए और कितना नहीं यह तो आगे पता चलेगा फिलहाल जीवन लगभग खुशनुमा पटरियों पर दौड़ रहा था.
भावनाओं के ज्वार को थामने की कोशिश में मरीना ने एक रोज रिल्के को खत लिखा. वो दो अगस्त का दिन था. उसने लिखा,

प्रिय राइनेर,
तुमने अपनी कविताओं का जो तोहफा मुझे भेजा है वो मेरे लिए बेमिसाल है. कितनी बार उलट-पलट कर देख चुकी हूं. उसे छूती हूं और तुम्हारे स्नेह की छुअन को महसूस करती हूं. जाने क्यों मुझे लगता है कि यह पहली बार है जब तुमने इस तरह किसी को अपनी कविताओं की प्रेरणा बताया है. मैं बहुत बहुत बहुत खुश हूं.
राइनेर, खुशी के इस आलम में आज मैं तुमसे वो बात कहना चाहती हूं, जो अब तक नहीं कही. तुम्हें पता है, मैं सदियों से जाग रही हूं. मानो नींद का और मेरा कोई रिश्ता ही न हो. बंद आखों में भी जागती रहती हूं...जाने क्यों लगता है राइनेर कि तुमसे मिलूंगी तो सदियों की नींद को ठिकाना मिलेगा. तुम्हारे कंधों पर अपनी उम्र, अपना अकेलापन सब टिका दूंगी. तुम संभाल लोगे न सब मेरे प्यारे राइनेर. बस मुझे वहीं सुला देना.
तुम्हारी मरीना




यह पत्र लिखने के बाद मरीना की आंखों की कड़वाहट जरा कम हुई. वो हल्का महसूस कर रही थी. हम सब अपने भीतर के अवसाद को टिकाने के ठीहे खोजते फिरते हैं...और जरा सी संभावना की झलक मिलते ही उस ओर लपक पड़ते हैं. अक्सर इसे प्रेम का नाम भी दे बैठते हैं. इस वक्त अवसाद के ऐसे ठीहों की खोज में भटकती न जाने कितनी स्त्रियां याद आ रही हैं. बहरहाल, मरीना के इस पत्र का कोई जवाब नहीं आया. चौदह अगस्त को मरीना ने फिर से राइनेर को एक पत्र लिखा.





प्रिय मित्र,
क्या तुम्हें मेरा पिछला पत्र मिला? जो मैंने दो अगस्त को पोस्ट किया था. मैं इसलिए पूछ रही हूं क्योंकि मैंने उसे जल्दबाजी में पोस्ट किया था. और ऐसा पहली बार है जब तुमने मेरे पत्र का जवाब नहीं दिया है.
रिल्के, मैं तुमसे मिलना चाहती हूं. मैंने पिछले पत्र में इसी बाबत दरयाफ्त की थी. आने वाली सर्दियों में हमें जरूर कहीं मिलना चाहिए. स्विट्जरलैंड या जहां तुम पहले कभी न गये हो. जहां बहारों का मौसम हो....
तुम इस खत का जवाब जल्दी से भेज दो रिल्के ताकि जवाब मिलते ही स्मृतियों में मैं अपनी होने वाली मुलाकात के सिरे जोडऩा शुरू कर दूं. ओह...इस ख्याल में ही कितना रोमांच है ना रिल्के...तुम जल्दी से जवाब भेजो. मैं इंतजार कर रही हूं.
तुम्हारी अपनी

मरीना




(जारी...)


















9 comments:

मनोज पटेल said...

फिर क्या हुआ ???

बाबुषा said...

पता है, मैं सदियों से जाग रही हूं. मानो नींद का और मेरा कोई रिश्ता ही न हो. बंद आखों में भी जागती रहती हूं...!
aage ka jaldi post karo.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग इस ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो हमारा भी प्रयास सफल होगा!

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

प्रतिभा जी
मन को छू लेने वाली कहानी प्यारा ख़त ...कोमल भाव ..प्यार के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है सुन्दर लेख -

शुक्ल भ्रमर 5

तुम्हें पता है, मैं सदियों से जाग रही हूं. मानो नींद का और मेरा कोई रिश्ता ही न हो. बंद आखों में भी जागती रहती हूं...जाने क्यों लगता है राइनेर कि तुमसे मिलूंगी तो सदियों की नींद को ठिकाना मिलेगा. तुम्हारे कंधों पर अपनी उम्र, अपना अकेलापन सब टिका दूंगी. तुम संभाल लोगे न सब मेरे प्यारे राइनेर

रंगनाथ सिंह said...

हमें भी इन्तजार है अगली कड़ियों का..

varsha said...

beshak khaton ka silsila utkantha jaga raha hai lekin kya yah sambhav hai ....शायद एक को खोये बिना दूसरे को साधे रहना..

Deepak Verma said...

I wanna read all those letters of Rilke and Marina. How can I get them. Also books written by Rilke. Plz help me, it will be wonderful if I'll get them on net.

लीना मल्होत्रा said...

यह एक कला है शायद एक को खोये बिना दूसरे को साधे रहना.. jeevan ke satya ko kitni aasaani se kah diya. bahut sundar post. waiting.

लीना मल्होत्रा said...

thodi der se aai. shuru se padha. dam nikal gaya . kahan se been lai tum pratibha ye khazaana. bahut shukriya.