Saturday, May 21, 2011

चलो कि अब हम गुनहगार ही सही...



सियासत के मायने हम क्या जानें
हम तो बस गेहूं की बालियों
के पकने की खुशबू को ही जानते हैं
दुनिया की सबसे प्यारी खुशबू
के रूप में,

क्या पता कैसा होता है जंतर मंतर 
और कैसा होता है जनतंतर
देश दुनिया की सरहदों से
हमारा कोई वास्ता कैसे होता भला
हम तो घर की दहलीजों से ही 
लिपटे हैं न जाने कब से

बस कि हमने पलकों को झुकाना 
जरा कम किया
आंखों को सीधा किया,
शरमा के सिमट जाने की बजाय
डटकर खड़े होना सीखा

आंचल को सर से उतार कमर में कसा 
कि चलने में सुविधा हो जरा
कहीं पांवों की जंजीर न बन जाए पायल
सो उससे पीछा छुड़ाया, 

न कोई तहरीर थी हमारे पास
न तकरीर कोई
हमने तो ना कहना 
सीखा ही नहीं था
बस कि हर बात पे हां कहने 
से जरा उज्र हो आया था
इसे भी गुनाह करार दिया 
तुम्हारे कानून ने

चलो कि अब हम गुनहगार ही सही...

13 comments:

Swapnrang said...

wah badhiya ekdam datkar khadi kavita

Anonymous said...

aap itna accha kaise likh lente hai

बाबुषा said...

Gazab Pratibha ! :-) Lage raho munnabhai !

Unknown said...

Totally mad after your writing mam!

Vijuy Ronjan said...

आंचल को सर से उतार कमर में कसा कि चलने में सुविधा हो जराकहीं पांवों की जंजीर न बन जाए पायलसो उससे पीछा छुड़ाया,
न कोई तहरीर थी हमारे पासन तकरीर कोईहमने तो ना कहना सीखा ही नहीं थाबस कि हर बात पे हां कहने से जरा उज्र हो आया थाइसे भी गुनाह करार दिया तुम्हारे कानून ने
चलो कि अब हम गुनहगार ही सही...
bahut badhiya Pratibha ji...behtareen prastuti.

मनोज पटेल said...

और लम्बी होनी चाहिए इन गुनाहों की फेहरिस्त. बहुत अच्छी कविता प्रतिभा जी, बधाई !

प्रवीण पाण्डेय said...

सच है, कितने शोर आ गये हैं, सुरीली जिन्दगी में।

Ashok Kumar pandey said...

गजब की सहजता से भारी अर्थवान कविता.सर से उतार कर आँचल को कमर में कसने वाली ही इस दुनिया को बेहतर बनाएंगी.

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

मैं बहुत अच्छा, उम्दा, बढिया जैसी टिप्पणी नहीं कर सकता, बस सोच रहा हूं, कविता की पंक्तियों को गुनगुना रहा हूं। पायल छनकने की आवाज अच्छी नहीं लगती, जंजीर टूटने की आवाज अच्छी लगती है अब।

Nidhi said...

आंचल को सर से उतार कमर में कसा
कि चलने में सुविधा हो जरा
कहीं पांवों की जंजीर न बन जाए पायल
सो उससे पीछा छुड़ाया, ............महिला सशक्तिकरण की बात हम सब करते हैं.महिला कि जो स्वतंत्र है उसमें बाहर निकल कर जो परिवर्तन आये हैं .......वो ज़रूरी नहीं की उसने स्वेच्छा से अपनाए हो .......वो उसकी राह में रुकावट पैदा कर रहे थे केवल इसलिए छोड़ने पड़े हैं.फिर वो चाहें आँचल हो या पायल.....जैसा कि आपने कहा ..........सुन्दर!!

Pratibha Katiyar said...

सभी का बहुत आभार!

neera said...

सिर्फ आह! निकलती है सच के आईने को देख कर ..



बस कि हर बात पे हां कहने

से जरा उज्र हो आया था

इसे भी गुनाह करार दिया

तुम्हारे कानून ने

Naveen Joshi said...

बस कि हर बात पे हां कहने से ज़रा उज़्र हो आया था‌‌‌‍‍....क्या बात है प्रतिभा,