Sunday, May 8, 2011

सच तो ये है कुसूर अपना है..




सच तो ये है कुसूर अपना है ...
चाँद को छूने की तमन्ना की
आसमा को जमीन पर माँगा 
फूल चाहा कि पत्थरों  पर खिले..
काँटों में की तलाश खुशबू की 
आरजू  की कि आग ठंडक दे 
बर्फ में ढूंढते रहे गर्मी 
ख्वाब जो देखा, चाहा सच हो जाये 
इसकी हमको सजा तो मिलनी थी 
सच तो ये है कुसूर अपना है..

21 comments:

Swapnrang said...

tarkash ke tir seedhe dil main

प्रवीण पाण्डेय said...

यदि हृदय धड़कना अपराध है तो अपराध अपना है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चंद पंक्तियों में समझा दिया कि ज्यादा पाने की चाह में कसूर अपना ही होता है

kavita verma said...

masoom khvahishon ki saja...

बाबुषा said...

True!

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

सच तो ये है कुसूर अपना है..

बहुत बढिया

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 10 - 05 - 2011
को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

http://charchamanch.blogspot.com/

udaya veer singh said...

aapko pahali bar padha , sundar laga /
bahut shaktishali paksh,bhavnaon ka .
addbhut .../ sadhuvad ji .

रचना दीक्षित said...

प्रतिभा मज़ा आ गया. बहुत खूबसूरत ज़ज्बात.

रश्मि प्रभा... said...

सच तो ये है कुसूर अपना है ...
चाँद को छूने की तमन्ना की
आसमा को जमीन पर माँगा
फूल चाहा कि पत्थरों पर खिले..haan ye kasoor apna hi hai, bahut achhi rachna

दर्शन कौर धनोय said...

सच तो यह हे की कसूर अपना है "
वाह ! क्या बात है ? प्रतिभा जी,कभी हमरे अंगना भी आए ...

prerna argal said...

bahut achchi dil ko choo lene wali rachanaa.badhaai aapko.

Khare A said...

bahut hi khoobsurti se aapne apni bat rakhi!
control urself & desires

sundar prastuti!

Vandana Ramasingh said...

बेशक तमन्नाओं को पालना आसान नहीं होता ...दर्द को बहुत अच्छे से व्यक्त किया आपने ... पर हर सपने की बुनियाद पर ही हकीकत का महल खड़ा होता है इसलिए सपने जरूर देखें

Pawan Kumar said...

फूल चाहा कि पत्थरों पर खिले..
काँटों में की तलाश खुशबू की
आरजू की कि आग ठंडक दे
बर्फ में ढूंढते रहे गर्मी
सच तो ये है कुसूर अपना है ... मगर तमन्नाओं बिना भी जीवन अधूरा ही है....!!!
बहरहाल यह भी सच है कि चाँद को छूने की तमन्ना भी कभी कभी करनी चाहिए.

प्रदीप नील वसिष्ठ said...

आंसुओं को ओस की बूँद कहने वालो ,तुम क्या जानो
रातें भी रोया करती हैं ,पेड़ों के गले लगकर
हाँ ,कसूर रात का ही है
लिखती रहिएगा
www.neelsahib.blogspot.com

mayakaul said...

sach to ye hai kusur apna hai.Mera soubhagay ki tughe dekha pahle PADHA bad me.Jo narm kone har kisi ke dil me rahte hain vo tumhari sanson ke sath hai.

Pratibha Katiyar said...

बहुत शुक्रिया माया जी !

hema awasthi said...

प्रतिभा जी, ख्वाहिशें ऐसी ही होती है,
ये दर्द अब तक मेरे दिल में था.
मेरे दर्द को आपने इतने खूबसूरत शब्द दिए है कि मै विस्मित हूँ.
मेरा दर्द कहीं आपके अंदर है,इस नाते आप मेरे बहुत करीब हो गयीं है ........

राजेन्द्र अवस्थी (कांड) said...

मर्मस्पर्शी रचना,
कल्पनाओं का शास्वत संसार शब्दों के माध्यम से आपने साकार कर दिया..

ajay kumar dhoundiyal said...

वाव वाव क्या बात है बहुत खूब ...............