Friday, May 6, 2011

प्रेम की एक कथा


यह प्रेम की कथा है
किसी दर्शन की नहीं
किसी सत्य की नहीं
किसी साधना की नहीं
न किसी मोक्ष की

वह घटी थी धरती पर
जैसे घटता है प्रेम
जिसमें समाहित हैं
दर्शन, सत्य, साधना, मोक्ष
सौंदर्य

कहां समाप्त हुई वह कथा अभी
अहर्निश वह जागती है
इस धरती पर
वह इस धरती की 
प्रेमकथा...
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मृत्यु को जीतने नहीं

किसने कहा कि वह संतप्त था
मृत्यु को देखकर?

वह मृत्यु को जीतने निकला था
किसने कहा?

साक्षी हैं उसके वचन कि 
उसने सिर्फ जीवन को खोजा
बस यह चाहा कि 
काया की मृत्यु से पहले 
न मरे मनुष्य....


- आलोक श्रीवास्तव

(कविता संग्रह दुख का देश और बुद्ध से)

2 comments:

मनोज पटेल said...

बस यह चाहा कि
काया की मृत्यु से पहले
न मरे मनुष्य....
वाह !

प्रवीण पाण्डेय said...

दोनो ही विचारणीय प्रस्तुति।