Saturday, April 30, 2011

दिल में ऐसे ठहर गए हैं ग़म



दिल में ऐसे ठहर गए हैं ग़म
जैसे जंगल में शाम के साये 
जाते-जाते सहम के रुक जाएँ 
मुडके देखे उदास राहों पर 
कैसे बुझते हुए उजालों में 
दूर तक धूल धूल उडती है...
- गुलज़ार 



4 comments:

pallavi trivedi said...

gulzar ko padhna hamesha achcha lagta hai...

प्रवीण पाण्डेय said...

ग़मों को टिमटिमाता तारा दीखता रहा रात भर।

नीरज गोस्वामी said...

क्या कहें...वाह...बेजोड़.

नीरज

kavita verma said...

gulzar hamesha bejod rahenge..dhanyavad..