Monday, April 18, 2011

साधना है प्रेम का राग...


जब देखती हूँ तुम्हारी ओर 
तब दरअसल 
मैं देख रही होती हूँ अपने उस दुःख की ओर 
जो तुममें कहीं पनाह पाना चाहता है.
जब बढाती हूँ तुम्हारी ओर अपना हाथ
तब थाम लेना चाहती हूँ
जीवन की उस  आखिरी उम्मीद को 
जो तुममे से होकर आती है .
जब टिकाती हूँ अपना सर 
तुम्हारे कन्धों पर 
तब असल में पाती हूँ निजात 
सदियों की थकन से 
तुम्हें प्यार करना असल में 
ढूंढना है खुद को इस स्रष्टि में..
बोना है धरती पर प्रेम के बीज 
और साधना है प्रेम का राग...

8 comments:

Unknown said...

khubsurat..lajawab..

संजय भास्‍कर said...

एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

Unknown said...

तुम्हें प्यार करना असल में
ढूंढना है खुद को इस स्रष्टि में..
बोना है धरती पर प्रेम के बीज
और साधना है प्रेम का राग...

वाह! क्या बात है...

Unknown said...

सुन्दर!

के सी said...

तुम्हें प्यार करना असल में ढूंढना है खुद को
बहुत खूब... कविता बड़ी सुगमता से उतरती है मन के आँगन में.

Swapnrang said...

sidhi sachhi achhi kavita.

प्रवीण पाण्डेय said...

साधना का आनन्द, हर विषय में।

Ajay Garg said...

this one is the best poem of yours i have read so far... well done..