Sunday, April 10, 2011

ये चांद गवाही देगा...



अपने हिस्से के सारे उदास दिन वो नदी में डालकर बुझा देती थी. सूरज सारा दिन उसके कलेजे में जलता रहा था. घड़ी की सुइयों में लड़के का चेहरा जो उग आया था. बार-बार वो घड़ी यूं देखती थी, मानो अभी घड़ी की सुइयों से निकलकर वो बाहर आ खड़ा होगा. न जाने कितनी सदियों से ये सिलसिला जारी था. इसी इंतजार में न जाने कितने सूरज इसी नदी में डूबकर मर गये. न जाने कितनी चांद रातों ने उसके सर पर हाथ फिराया.


ऐसी ही एक रात में जब वो नदी में अपना एक उदास दिन बुझा रही थी, दो हथेलियों ने उसकी आंखों को ढंक दिया था. उसकी खुशबू से उसे पहचानना कोई मुश्किल काम नहीं था. फिर भी वो उसके सिवा सारे नाम बूझती रही. लड़का नाराज हो गया. लड़की मुस्कुरा दी. उसका यूं नाराज होना उसे बहुत अच्छा लगता था. वो उसकी सारी नाराजगी को अपने आंचल में बांध लेती थी. 

लड़का फिर बड़ी मुश्किल से मानता था. ज्यादातर तब, जब लड़की रोने को हो आती थी. वो कहती, तुम इतना भी नहीं समझते कि मैं तुम्हें चिढ़ा रही थी.
मैं कोई बच्चा हूं, जो मुझे चिढ़ा रही थी? वो गुस्से में भरकर कहता. 

लड़की सूखी सी हंसी हंस देती. 

उसकी दादी कहती थी कि 'बिटियन का हंसी तब जादा आवत है जब वे रोओ चहती हैं...' दादी की बात तो खैर दादी के साथ गई लेकिन लड़की की हंसी उसके साथ रह गई. उसकी उस हंसी के कारण लड़का कभी खोज नहीं पाया. वो उस हंसी में उलझ जाता था. लड़की को अक्सर लगता था कि लड़का उसके पास होकर भी उसके पास नहीं होता है. अक्सर वो कहीं और खोया रहता था. लड़की की उंगलियों से अपनी उंगलियों को उलझाते हुए वो अपना मन न जाने कहां उलझाये रहता था. नदी के किनारों पर उनके प्रेम के वो लम्हे अक्सर टूटते और बिखरते रहते थे. लड़की टूटे हुए लम्हों को भी चुन लेती थी.


लड़के की बातों में लड़की की बातें नहीं होती थीं. लड़का अपनी आंखों को कभी सितारों में उलझा लेता था, कभी दरख्तों में. वो लड़की की आंखों में आंखें डालने से अक्सर बचता था. लड़की कभी कारण नहीं पूछती थी. बस उसे देखती रहती थी. वो भी ऐसी ही एक पाकीजा सी रात थी. लड़की के आंचल में उस रोज ढेर सारी उदासी बंधी थी. उस रोज भी वो हमेशा की तरह देर से आया था. रात लगभग बीत चुकी थी. उबासियां लेता चांद जाने की तैयारी में था.


आते ही लड़के ने अपनी उलझनों का टोकरा लड़की को टिकाया. उसने लड़की की आंखों की ओर फिर से नहीं देखा. लड़के के साथ उसकी जिंदगी की न जाने कितनी छायाएं भी चली आती थीं. उसे पता ही नहीं था कि उस रोज लड़की ने अपनी मां को खोया था. वो अपनी मां की स्मृतियों में गले तक डूबी थी. उनके जाने के गम को जज्ब कर रही थी. उदासी के कुहासे वाली उस रात में भी लड़का उसे अपनी कोई कहानी सुना रहा था. जिसे लड़की सुन नहीं रही थी, सह रही थी. लड़की बता ही नहीं पाई कि वो अपनी मां की स्मृतियों को उससे बांटना चाहती थी. उसकी हथेलियों में अपना दर्द छुपा देना चाहती थी. उसके कंधों पर अपनी उदासी को कुछ पलों के लिए टिकाकर मुक्त होना चाहती थी. लेकिन लड़का वहां होकर भी वहां था ही नहीं.
उसी रोज लड़की ने अपने कंधे चौड़े किये थे. उसी रोज उसने अपने आंसुओं को परास्त किया था. उसी रोज वो सबसे जोर से खिलखिलाई थी. इतनी तेज हंसी थी वो कि चुपचाप एक गति से बहती जा रही नदी अचानक रुककर उसे देखने लगी थी. लड़की ने लड़के का हाथ धीरे से छोड़ दिया था. नदी के किनारे पर छप्पाक से एक आवाज आई थी. वो लड़की की आंख का आखिरी आंसू था.


लड़का अब भी अनजान है कि उस रात उसने क्या खो दिया. लड़की अब भी उससे मिलती है. नदी के किनारे अब भी  महकते हैं. लड़का समझता है कि लड़की उसके पास है लेकिन लड़की तो दूर कहीं चांद के देश में चली गयी है. यहां तो बस उसका जिस्म है जो अपने हिस्से के उदास दिनों को नदी में बुझाने के लिए रह गया है.


लड़की की मुस्कुराहटें चांद की कोरों को भिगो देती हैं. नीली नदी के किनारे भीगी पलकों वाले चांद को अब भी देखा जा सकता है...

10 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जब आँसू प्लावित होना चाहें तो हँसी का संकेत भेज देते हैं।

पारुल "पुखराज" said...

बिटियन का हंसी तब जादा आवत है जब वे रोओ चहती हैं...'कितनी बढ़िया बात है ये

उदासी दिखाने वाले अमूमन अंदर से हंसते हुए लोग थे…जो सच में उदास रहे, वे सदा मुस्कराते मिले ।

के सी said...

बहुत निर्मल. जैसे मन को एक रंगीन उदास पंखुड़ी छू गई हो.

Unknown said...

आपने तो रुला ही दिया प्रतिभा जी. न जाने कितनी बार पढ़ चुकी हूँ और न जाने कितनी बार पढूंगी.
कितनी अपनी सी होती हैं आपकी कहानियां. बहुत शुक्रिया!

डिम्पल मल्होत्रा said...

सीधी सरल बिना उलझाव की कहानी पढ़ कर पहली ही बार में समझ नहीं पा रही हूँ की क्या लिखूं...आज की बेहतरीन कहानी पढ़ी...लड़की कहीं अपने जैसी लगी क्यूंकि नीली नदी ना सही एक नीली झील मेरे पास भी है...

Unknown said...

marvelous, kya kahani likhi hai aapane.. mere paas shabd nahi hai...

شہروز said...

behad khoobsaurat ..shaayrana andaz..
लड़की की मुस्कुराहटें चांद की कोरों को भिगो देती हैं. नीली नदी के किनारे भीगी पलकों वाले चांद को अब भी देखा जा सकता है...

hamarivani said...

अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

अनूप शुक्ल said...

अच्छी पोस्ट! इसी को पिछले इतवार को अखबार वाले ने छापा आपके ही नाम से :)

Neeraj Express said...

टू गुड मैम। मैं इस तरह से लिखना कब सिखूंगा जब पढते-पढते शब्‍दों से रचा हुआ नजारा सामने ही नजर आने लगे। और लिखिए, और सिखने का मौका दीजिए।।।।