Friday, March 18, 2011

आसमान से रंग बरस रहे हैं बेहिसाब...



आसमान से रंग बरस रहे हैं. बेहिसाब रंग. खुशी के रंग, प्यार के रंग, किसी की याद के रंग, इकरार के रंग, इनकार के रंग, मिलन के रंग, विरह के रंग...रंग ही रंग. न जाने कैसा मौसम है कि रंगों ने सबको सराबोर कर रखा है. कहते हैं यह पॉलिनेशन पीरियड है. परागकणों के उत्सर्जन का समय. प्रकृति अपनी उदात्तता  पर होती है इन दिनों. जाहिर है हमारा मन भी. क्योंकि चाहे न चाहे हम प्रकृति से संचालित होते ही हैं. इन दिनों हमारी समस्त इंद्रियां काफी सक्रिय होती हैं. हमारे सोचने, महसूस करने की क्षमताएं कई गुना बढ़ी हुई हैं. हर कोई जेहनी हलचल का शिकार है. कोई प्रेम के सुर्ख रंग में रंगा जा रहा है तो कोई अवसाद के स्याह रंग को लिए बैठा है. रंगा हर कोई है इसमें कोई शक नहीं है. 

कहीं प्रेम का फूल बस एक नज़र देख लेने भर से खिल उठा है. कहीं जरा सी बात पर दिल टूट गया है किसी का. किसी की याद का मौसम किसी के पूरे वजूद पर बिखरा पड़ा है. पलाश के फूल उसे मुंह चिढ़ाते नज़र  आ रहे हैं. मौसम की सरगोशियां दिल में चुभ रही हैं. कोई नई नवेली दुल्हन अपनी पहली होली पर मायके जाने वाली है लेकिन पति का साथ भी छोडऩा नहीं चाहती. घंटों फोन पर जुगत लगाती है कि कैसे बन जायें दोनों काम. कोई विरही प्रेमिका फोन पर बार-बार नंबर डायल करके काट देती है जिद में कि मैं ही क्यों करूं फोन हर बार. उसे भी तो मेरी याद आनी चाहिए. कोई भौंरा उसके करीब से गुजरता है, तो वो भीगी आंखों से मुस्कुराती है. न जाने कैसे रंग बरस रहे हैं आसमान से कि हर कोई बस भीगा ही जा रहा है. 

जापान में सुनामी आया है. एक पल में कितने लोग 'है' से 'थे' हो गये. समूचा विश्व स्तब्ध है. ऐसे में एक दोस्त का फोन आता है, सुनो जापान का हाल देखकर मैंने कुछ डिसाइड किया है. मैंने पूछा क्या, यार जिंदगी जी भर के जीनी है बस. कल का क्या पता, क्या हो. कल के चक्कर में हम आज के, अभी के पलों को सैक्रिफाइस क्यों करें? जो भी है बस यही इक पल है...वो गुनगुनाती है. उसने तय कर लिया है अब वो इंतजार नहीं करेगी. आज ही निकल जायेगी अपने रूठे प्रेमी को मनाने उसके पास. उसकी गुनगुनाने की आवाज में प्रेम की मीठी सी छुअन है, जो पांच सौ किलोमीटर दूर बैठे हुए भी मुझे छू जाती है. 

तभी देखती हूं कोई मेरे इंतजार में बैठा है. फोन रखती हूं, मैं जानती हूं उसे. उससे मुखातिब होती हूं. 
हां बोलो? 
तुम्हें कौन सा रंग पसंद है? वो मुझसे पूछता है. 
क्यों? मैं सवाल करती हूं. 
तुम्हें तुम्हारी पसंद के रंग के अलावा सारे रंगों से रंगना है. 
ये क्या बात हुई? हां, अपनी पसंद के रंग तो तुम खुद अपनी जिंदगी में सजाकर रखती ही होगी ना? इस होली उन रंगों में खुदकर रंग कर देखो, जिन पर तुम्हारी अब तक न$जर ही नहीं गई. 
मैं हंसती हूं. ये मौसम है. हमेशा मुझसे ऐसे ही अठखेलियां करता है. 
लेकिन मुझे तो कुदरत के सारे रंग पसंद हैं...बहुत पसंद...तो अब मुझे कौन से रंग से  रंगोगे तुम?
वो चुप हो जाता है. तुम्हें रंगने की क्या जरूरत है. तुम तो पहले ही सर से पांव तक सराबोर हो कुदरत के रंगों से...तुम्हारे लिए तो हमेशा ही होली है. मैं मुस्कुराती हूं. लेकिन मैं इस बार होली खेलूंगी तुम्हारे साथ...
मौसम हैरत से मुस्कुराता है. अच्छा? 
तुम अपने सारे फूल मुझ पर बरसाना, मैं अपना सारा प्यार तुम पर बरसाऊंगी...तुम मेरे जीवन में ठहर जाना, मैं तुम्हारी हर डाल सजाऊंगी. 

मैं तो कबसे इसी फिराक में था, मौसम शरारत से मुस्कुराता है. एक हवा का झोंका मुझे छूकर जाता है. कहीं से फूलों की खुशबू आती है. अरे, ये तो मेरे जूड़े में लगा फूल है, जो खिलखिला  रहा है. ड्योढ़ी पर मौसम मुझे बुला रहा है. मैं तो जा रही हूं खेलने होली...आप भी अपनी झोली में भर लीजिये जिंदगी के सारे रंग. आसमान से बहुत सारे रंग बरस रहे हैं इस बार...आप सबको होली मुबारक

3 comments:

कविता रावत said...

Jindagi mein holi ke vividh rangon se saji aapki Holi ke suawasar par yah prastuti jindagi ka es jeeta jaagta aina prastut kar raha hai..
sundar prastuti ke liye dhanyavaad
Holi kee bahut bahut shubhkamnayen..

प्रवीण पाण्डेय said...

काश इन रंगों को समेट सकते हम भी।

Dorothy said...

खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.

नेह और अपनेपन के
इंद्रधनुषी रंगों से सजी होली
उमंग और उल्लास का गुलाल
हमारे जीवनों मे उंडेल दे.

आप को सपरिवार होली की ढेरों शुभकामनाएं.
सादर
डोरोथी.