Thursday, March 10, 2011

उस जंगल में प्रेम का डेरा


जंगल में घूमना, दरख्तों से बातें करना, जुगनुओं के पीछे भागना लड़की को बेहद पसंद था. अमावस की रातें उसे इसीलिए खूब भाती थीं. इन रातों में उसकी उदासी अपने उत्कर्ष पर होती थी और उदासी को साझा करने के लिए उसके पास पूरा एक जंगल था. 

चांद छुट्टी पर होता था इसलिए जुगनुओं की चांदी हो जाती. वे खुद को चांद समझने लगते. सब के सब हीरो हो जाते. लड़की खुद को चांद समझने वाले जुगनुओं के पीछे दौड़ती. उन्हें पकड़कर अपने जूड़े में टिका लेती. मानो कह रही हो कि समझे बच्चू, आई अक्ल ठिकाने. जुगनुओं को भी यूं लड़की से पकड़ाये जाने में बड़ा मजा आता था. 

जंगल के सारे जुगनुओं से लड़की की दोस्ती हो गई थी. वो उन जुगनुओं में अपना संसार खोजती थी. उनसे बातें करती थी. सारे जंगल में जुगनुओं की दिप दिप और लड़की की खिलखिलाहट गूंजती थी. कभी-कभी उसकी खिलखिलाहट में आद्र्रता शामिल हो जाती, तो कभी शोखी. लड़की रोती नहीं थी. कभी भी नहीं. उसने अपने मन के भीगे कोनों को भी खिलखिलाहटों में समेट दिया था. यह उसके लिए एक मोहक खेल था. जिसमें वो पारंगत हो चुकी थी. 

लड़की जुगनुओं को गाना सिखाती थी. सबको एक साथ बिठाकर जब वो सुर लगाती, तो सारे जुगनुओं की दिप दिप में एक रिद्म शामिल हो जाती. सारे जुगनू लड़की की बात मानते थे. अगर कोई शरारती जुगनू मटरगश्ती करता तो लड़की उसे उठाकर अपने जूड़े में लगा लेती. उसकी शरारत पर जुल्फों की ये कैद जुगनू को भी खूब भाती थी. वो बाकी जुगनुओं को देखकर मुस्कुराता था. लड़की भी मुस्कुराती थी. 

लड़की को जुगनुओं से खुद को सजाना अच्छा लगता था. वो जुगनुओं को पकड़-पकड़कर उनसे खुद को सजाया करती थी. काली अंधेरी रात में जंगल में दिप दिप करती हुई एक लड़की घूमती थी. वो अदुभुत न$जारा होता था. हवाओं का संगीत और जुगनुओं से दमकती लड़की. खुदा भी इस नजारे को देखने के लिए अमावस की रातों का बेसब्री से इंतजार करता था. लड़की जुगनुओं से सजी होती थी. वो कुछ गुनगुनाती थी. उसके सुरों की लौ के साथ जुगनुओं की दिप दिप की रिद्म भी मिलती थी. 
वो अमावस की ऐसी ही एक रात थी. 

उस रोज लड़की जुगनुओं के पीछे नहीं भागी. उसने दरख्तों से कोई बात नहीं की. उसने हवाओं से उसे अपने संग उड़ा ले चलने का इसरार भी नहीं किया. फूलों की तरफ पलटकर देखा भी नहीं. उसकी आंखों में जुगनुओं का अब कोई चाव नहीं था. जंगल उदास हो गया. इतने सालों से जंगल और लड़की इस कदर इकसार हो चले थे कि दोनों का वजूद एक-दूसरे में शामिल हो गया था. जुगनुओं के पीछे लड़की नहीं भाग रही थी, सो वे चुपचाप जहां-तहां बैठकर लड़की का चेहरा तकने लगे. हवाओं ने लड़की की देह को सहलाया लेकिन वहां कोई जुंबिश नहीं थी. दरख्तों ने झुककर उसके चेहरे को करीब से देखा, वहां गाढ़ी उदासी थी. अमावस की काली रात से भी गहरी उदासी. 

सारे मौसम लड़की को ताक रहे थे. अगर लड़की यूं उदास रही तो मौसमों के वजूद का क्या होगा. कौन अपने माथे पर बसंत सजायेगा. कौन पलाश को अपने आंचल में भरेगा. कैसे जंगल में प्रेम का संगीत गंूजेगा. सबकी आंखों में ढेरों सवाल थे. लड़की हर सवाल से बेखबर थी. उसकी आंखों में प्रेम के जुगनू चमक रहे थे...उसका चेहरा उदास था. खुदा लड़की के सजदे में था. 

5 comments:

udaya veer singh said...

kalpnaon ke lok men ,kalpnaon ka aalok,kayi bhrantiyan ke sath kayi
yatharth bhi pradarshit karata hai ,
sundar prayas . badhayi .

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रेम की आँखों में चाँद सी चमक होती है, जुगुनू सजदे में थे। वाह।

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

बहुत सुन्दर -- आपकी यह भावमयी प्रस्तुति और साहिर लुधयानवी जी वाली पोस्ट चर्चामंच पर हैं आज ... आप चर्चामंच मे आ कर अपने विचारों से अनुग्रहित करें ..धन्यवाद ..
http://charchamanch.blogspot.com/2011/03/blog-post_10.html

तथा अमृतरस ब्लॉग मे भी स्वागत है ..
http://amritras.blogspot.com

रवीन्द्र प्रभात said...

सार्थक प्रस्तुति, बधाईयाँ !

रूप said...

जुगनू बड़े लकी हैं प्रतिभा जी . बधाई , सुन्दर कल्पना है !