Monday, December 20, 2010

सर्द रातें, आलू-गोभा की सब्जी और प्रेम की छुअन

न जाने कब, कितनी बार प्रेम हमारे जीवन से टकराता रहता है. प्रेम का यूं हमसे टकराना हमारे जीवन को प्रेम से भरे या न भरे लेकिन जीवन के मरुस्थल में रूमानियत की कुछ नमी तो छोड़ ही जाता है. सारंगा तेरी याद में नैन हुए बेचैन...बांचते हुए न जाने कितनी बार रोएं खड़े हुए. गुनाहों का देवता पढ़ते हुए रात का कलेजा चीर देने वाली सिसकियों को रोकने की मुश्किल से गुजरते हुए, चार दिनों दा प्यार ओ रब्बा बड़ी लंबी जुदाई...सुनते हुए अपनी कोरों पर कुछ चलते हुए महसूस करते हुए न जाने कितनी बार प्यार हमें छूकर गुजरता रहा.
प्रेम कहानियों का पिटारा खोलें तो भरभरा कर ढेर सारी कहानियां उपस्थित हो जाती हैं. कविताओं का सुंदर बागीचा उग आता है आसपास. खूब-खूब प्रेम से लबरेज कहानियां, कविताएं. आज एक कहानी के बहाने एक बचपन का एक टुकड़ा याद आ गया. बचपन के इस टुकड़े में एक कहानी है और हैं मेरे नाना जी. यह कहानी मेरी स्मृतियों के सिवाय कहीं दर्ज नहीं है. यह मेरे जीवन की पहली प्रेम कहानी है. इसे मुझे तक पहुंचाने वाले मेरे नाना जी थे. जिन्हें हम प्यार से नन्ना कहते थे. सर्द रात में अलाव के पास बैठकर सुनी गई जिन कहानियों का स्वाद अब तक जबान पर है उनमें से एक है यह कहानी.

यह एक राजकुमारी की कहानी थी. राजकुमारी का नाम याद नहीं. कहानी का भी नहीं. इसमें एक राजकुमारी को गरीब लड़के से प्रेम हो जाता है. राजा राजकुमारी को कैद कर देता है. उस गरीब लड़के को मरवाने का हुकुम देता है. फिर किस तरह राजकुमारी अपने प्रेमी को बचाने के लिए लाख जतन करती है. जंगलों की खाक छानती है, जादुई शक्तियां हासिल करती है और अपने प्रेमी को बचाती है... कहानी काफी लंबी थी. उसने कितने पहाड़ लांघे, कितने समंदर के भीतर की यात्राएं कीं. कितने राक्षसों का सामना किया. कैसे जादुई शक्तियां अर्जित कीं, यह सब सचमुच काफी रोचक होता था. नाना जी कहानी इस तरह सुनाते थे मानो हम कहानी सुन नहीं रहे, देख रहे हों. जैसे ही अचानक बड़ा सा राक्षस राजकुमारी के सामने आता, हम सब घबरा जाते. सुंदर राजकुमारी जब लाल रंग के लिबास में बागीचे में रो-रोकर अपने गरीब प्रेमी को याद करती तो हम भी उदास हो जाते. और जब जालिम पिता उसे कैद में डलवा देता तो हमारे भीतर एक आक्रोश जन्म लेता राजा के खिलाफ.

यह उनकी किस्सागोई का निराला अंदाज था. सब हू-ब-हू याद है अब तक. नाना जी के अंदाज-ए-बयां में यह तक शामिल होता था कि लड़के को आलू गोभा (वे ऐसे ही बोलते थे) की सब्जी और नरम-नरम पूडिय़ां बहुत पसंद थीं. जिस तरह वो बताते लगता आलू गोभा की सब्जी और पूरियां दुनिया के सबसे स्वादिष्ट व्यंजन हैं. वे बताते कि राजकुमारी को गोभा की सब्जी एकदम पसंद नहीं थी. लेकिन किस तरह राजकुमारी हर रोज गोभा की सब्जी खाते हुए प्रेम को बूंद-बूंद महसूस करती थी. उस सर्द रात में, छोटी सी उमर में प्यार क्या होता है, यह तो समझ में नहीं आया था लेकिन प्यार के लिए मन में सम्मान बहुत महसूस हुआ. उसका असर यह हुआ कि तबसे जब भी गोभी की सब्जी खाती हूं, उस राजकुमारी की याद आ जाती है.

हमारा संसार किस्सों और कहानियों का संसार है. हर किसी के पास हजारों किस्से हैं और उन्हें कहने के एक से एक निराले अंदाज. आंचलिकता के हिसाब से कहानियों के कहन-सुनन का ढंग तो बदला लेकिन मिजाज नहीं. दुनिया भर की न जाने कितनी प्रेम कहानियों को पढ़ते हुए न जाने कितनी बार प्रेम को अपनी देह पर रेंगते हुए महसूस किया. आज जब स्मृतियों की गठरी को जरा सा खोला तो नाना जी की याद के साथ यह कहानी भी निकल आई. एक सुंदर कहानी. एक सुंदर याद!

9 comments:

अजय कुमार झा said...

प्रेम रस की अनुभूति से सराबोर पोस्ट ..अद्बुत आनंद दे गई

प्रवीण पाण्डेय said...

बचपन के प्रेम का अनुभव नहीं पर लोग कहते हैं कि बड़ा सशक्त होता है।

Pratibha Katiyar said...

प्रवीण, ये बचपन के प्रेम की बात नहीं है. बचपन में सुनी एक प्रेम कहानी का अहसास है.

siddheshwar singh said...

...कई कहानियाँ -सी याद आ के रह गईं!

* आज शाम से बहुत खुश हूँ कि एक अच्छे गद्य और
अनुभूति की उदात्तता से साक्षातकार हुआ!
सचमुच!

के सी said...

"सुंदर राजकुमारी जब लाल रंग के लिबास में बागीचे में रो-रोकर अपने गरीब प्रेमी को याद करती तो हम भी उदास हो जाते. और जब जालिम पिता उसे कैद में डलवा देता तो हमारे भीतर एक आक्रोश जन्म लेता राजा के खिलाफ. " आपकी किस्सागोई भी किसी सूरत में कम नहीं है.

और ये कितनी खूबसूरत बात
"हमारा संसार किस्सों और कहानियों का संसार है. हर किसी के पास हजारों किस्से हैं और उन्हें कहने के एक से एक निराले अंदाज"
पढ़ कर आनंद आया. आभार !

नीरज गोस्वामी said...

प्रेम में बलिदान करना अपने आप को मिटा देना सिखाती है ये कहानी...बेहद असरदार...शुक्रिया इसे हमें सुनाने के लिए...

नीरज

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बचपन में दादा-दादी या नाना-नानी से सु्नी कहानियों की स्मृति स्थाई हो जाती हैं।
यादों के खजाने से सुंदर कहानी के लिए आभार

rashmi ravija said...

प्रेम के ऐसे रूप से अगर बचपन में ही साक्षात्कार हो जाए तो उसके पवित्र अहसास का असर ताउम्र रहता है...
किशोर उम्र में पढ़े, 'गुनाहों का देवता', 'देवदास', 'प्राईड एंड प्रेजुडिस' ने ऐसा असर डाला है कि आज भी प्यार एक खुशनुमा अहसास है
पर अफ़सोस आज के बच्चों के पास ना वो बचपन की राजकुमारी की कहानियाँ हैं,ना वे किताबें...बस बेतुकी फिल्मे हैं,इसीलिए वो अहसास भी नदारद है.

Ajay Garg said...

नाना जो शब्द चित्र बांधते थे सो अलग, आपने भी
अपने अंदाज़ से एक शब्द चित्र बाँध दिया....
नाना की चारपाई के पास बैठकर, हथेली को ठुड्डी
पे टिकाकर, प्रेम के प्रति अनजाने में अपने मन में
सम्मान बढ़ाती जाती नन्ही-सी लड़की...

अब समझ में आया ये किस्सागोई की कला कहाँ से
मिली है आपको!