Wednesday, September 15, 2010

कुदरत का ऐलान

तुम्हें कौन सा मौसम पसंद है. लड़के ने पूछा? लड़की मुस्कुराई.
शरद. उसने कहा.
तुम्हें कौन सा फूल पसंद है?
गुलाब. लड़की ने कहा.
तुम्हें चिडिय़ा कौन सी पसंद है?
गौरेया.
प्रकृति में सबसे सुंदर तुम्हें क्या लगता है?
सूरज. लड़की ने मुस्कुरा कर कहा.
लड़की की आंखों में चमत्कार गई थी. उसकी आंखों में सूरज उग आया. उसने
अपनी हथेलियों को कटोरी की तरह बना लिया. उस कटोरी में उसने धूप भरने की कोशिश की. एक अंजुरी धूप, जिसमें वह नहा लेना चाहती थी. उसने अपने हथेलियों में भरी धूप को अपने सर पर उड़ेल लिया. लड़की ने शरारत से
पलकें झपकायीं तो लड़का हंस दिया.
उसे लड़की का यह रूप बहुत पसंद है. ऐसे समय में लड़की अपने भीतर होती है.
उसका संपूर्ण सौंदर्य छलक रहा होता है. भीतर का सौंदर्य बाहर के सौंदर्य से
होड़ लेता है. और दोनों मिलकर सारे जहां की खूबसूरती पर भारी पड़ते हैं.
लड़के के पास हमेशा सवालों का पूरा बीहड़ होता है. हमेशा. लड़की को उस बीहड़ से गुजरना कभी बुरा नहीं लगता. लड़का जवाबों से ज्यादा तल्लीन अपने सवालों में था. वो लड़की के बारे में सब कुछ जान लेना चाहता था. उसे पता था कि किसी को चाहने के लिए उसके बारे में सब कुछ जान लेना अच्छा उपाय है. यह जानना किस तरह का हो यह उसे पता नहीं था. यूं उसे लड़की से बात करना ही
बहुत पसंद था. सो उनकी मुलाकातों में अक्सर सवालों के ऐसे ही गुच्छे उगते थे.
जवाबों के भी. लड़की को लगता कि कोई अंताक्षरी चल रही है. अगर लड़का कभी सवाल न पूछे तो लड़की उदास हो जाती थी. उसे लड़के के सवालों में आनन्द आता था. इसी बहाने वो खुद को भी जान पाती थी. कई सवालों का जवाब देते हुए उसे पहली बार अपने ही बारे में पता चला. जैसे उसके जीवन की सबसे बड़ी ख्वाहिश क्या है? जिस रोज लड़के ने पूछा था यह सवाल लड़की उलझ सी गई थी. लड़का इस उम्मीद से था कि वो उसका नाम लेगी. लेकिन लड़की चुप रही. उसने इस बारे में कभी सोचा ही नहीं. उसकी ख्वाहिशें छोटी-छोटी होती थीं. तितली पकडऩा, फूलों से बातें करना, मां के गले से लिपट जाना, पापा की पसंद का खाना बनाना. जीवन की ख़्वाहिश? ऐसा तो कभी सोचा ही नहीं था उसने. कितने दिनों तक वो इस सवाल में उलझी रही थी.
ऐसे ही सवालों का चक्रव्यूह रचते हुए एक बार लड़के ने पूछा रंग कौन सा पसंद है तुम्हें?
लड़की खामोश रही.
लड़के ने फिर पूछा. तुमने बताया नहीं. तुम्हें कौन सा रंग पसंद है.
लड़की का चेहरा लाल हो उठा. सुर्ख गुलाब की तरह. उसकी आंखों के आगे न जाने कितने गुलाब खिल उठे, न जाने कितने गुलमोहर, न जाने कितने पलाश. लड़की का चेहरे पर ढेर सारे रंग आये-गये. लेकिन लाल रंग स्थायी रूप से टिक गया.
लड़की ने शरमाते हुए कहा धीरे से कहा- लाल.
अचानक लड़की घबरा उठी, नहीं-नहीं लाल नहीं.
नहीं...नहीं लाल तो बिल्कुल नहीं.
सूरज भी नहीं. शरद भी नहीं, लाल गुलाब भी नहीं. कुछ भी नहीं. लाल नहीं. नहीं,
नहीं, नहीं...
लड़की के चेहरे पर अचानक घबराहट तारी हो गई थी. उसकी आवाज कांपने लगी. उसे न$जर आने लगीं लाल खून में सनी लाशें, बिलखते बच्चे. लाल जोड़े में सजी दु:खी, आंसू बहाती औरतें, जिन्हें अर्थी में ही उस घर से निकलने की ताकीदें मिल रही थीं. उसे ध्यान आया
कि राजा ने लाल रंग के खिलाफ तो फरमान जारी किया है. जिसे पसंद होगा लाल रंग वो राजा का दुश्मन होगा. लड़की फरमान से डर गयी थी. उसने घबराते हुए कहा, लाल रंग नहीं. लाल ओढऩी भी नहीं, लाल सिंदूर भी नहीं, लाल बिंदी भी नहीं.
लड़का समझ नहीं पा रहा था कि लड़की को क्या हुआ अचानक. अच्छी खासी तो खिलखिला रही थी. अब इस कदर परेशान हो रही है. आखिर लाल रंग पसंद करने में बुराई क्या है. इतना डरने की क्या बात है. लड़के ने उसे बहुत संभालना चाहा लेकिन वह बहुत घबराई हुई थी. लाल नहीं...लाल नहीं...कहते हुए वह भाग गई
वहां से.
लड़का समझ गया. उदास हो गया. उसके बस में भी तो नहीं था, लड़की के मन से डर को निकाल फेंकना. वह लौट गया अपने घर. उसकी कोरें गीली हो उठीं. उसने गलत सवाल किया ही क्यों? उसे अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था.
अगले दिन लड़के की आंख खुली तो उसके घर के सामने लगा गुलमोहर लाल फूलों से लदा हुआ था. जमीन पर भी इतने फूल गिरे थे कि धरती पूरी लाल हो गयी थी. उगते हुए सूरज का रंग भी लाल ही था. लड़का हैरान था. आखिर माजरा क्या है, वो समझ नहीं पा रहा था. वो घर से बाहर निकला तो उसे महसूस हुआ कि सारा शहर लाल रंग के फूलों से पट गया है. उसे एक कोने से ढेर सारी दुल्हनों का झुंड आता दिखा. उनकी आंखों में संकोच के लाल रंग की जगह आत्मविश्वास के
तेज की लाली थी. उसे लगा कुदरत ने किसी जंग का ऐलान कर दिया है. लड़का मुस्कुरा उठा. तभी उसने देखा सामने से लड़की मुस्कुराती हुई तेज कदमों से चलते हुए आ रही है उसके पास. उसने लाल रंग की ओढऩी पहनी हुई थी. लाल बिंदिया भी थी उसके माथे पर. मानो उसने पूरा सूरज उगा लिया हो. लड़का उसे खुश देखकर बहुत खुश हुआ. लड़की ने उसके करीब आकर कहा, मुझे पसंद है रंग लाल. सुना तुमने लाल. यह कहने में अब मुझे किसी का डर नहीं.
अगले दिन अखबारों में खबर थी कि जाने कौन सा हुआ चमत्कार बीती रात कि गल गई जेलों की सलाखें सारी. राजा का फरमान कहीं कोने में दुबका पड़ा था.
सपना ही सही लेकिन आंख खुलने पर लड़की अपने इस सपने को लेकर बड़ी खुश थी.

15 comments:

अरुण चन्द्र रॉय said...

रंग के बहाने आपने मन के भीतर के भय और स्वप्न के बीच के द्वन्द के बीच जीने की लालसा जो सुन्दरता से अभिव्यक्त कर दिया है..

गजेन्द्र सिंह said...

सपना ही सही , कुछ तो अच्छा था
बहुत बढ़िया प्रस्तुति .......

मेरे ब्लॉग कि संभवतया अंतिम पोस्ट, अपनी राय जरुर दे :-
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_15.html

Sarika Saxena said...

आपकी कलम किसी चित्रकार की तूलिका सी है जो शब्दों के खूबसूरत चित्र प्रस्तुत करती है ....

rohit said...

कहानी लिखने की आपकी शैली लाजवाब है । लाल रंग के माध्यम से आपने बहुत कुछ कह दिया है । इसी शैली में आपकी एक-दो कहानियां और पढी हैं । इस दौर में जबकि कहानी में सपाटबयानी की प्रमुखता है ,आपकी शैली प्रभावित करती है ।

pratibha mishra said...

मन के विचारों को भावपूर्ण अभिव्यक्ति दी है

अनिल कान्त said...

बेहद खूबसूरत और रूमानी सपना

Unknown said...

ANDAAZ a Baya bahut hi sunders hai

प्रवीण पाण्डेय said...

शब्दों की ईंट से निर्माण होता कथा-भवन। सुन्दर, भव्य।

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मन के द्वन्द को खूबसूरती से बयां किया आपने.........
और शब्द तो कमाल के चुने हैं....... बधाई

Udan Tashtari said...

शानदार अभिव्यक्ति...एक स्वपन..एक चित्र..भाव!

के सी said...

लड़की का चेहरा लाल हो उठा. सुर्ख गुलाब की तरह. उसकी आंखों के आगे न जाने कितने गुलाब खिल उठे, न जाने कितने गुलमोहर, न जाने कितने पलाश. लड़की का चेहरे पर ढेर सारे रंग आये-गये. लेकिन लाल रंग स्थायी रूप से टिक गया.

ख्वाब है एक मुक्कमल दुनिया का इसीलिए अच्छा है.

sonal said...

bahut khoobsurat rachna ...

neelima garg said...

so poetic....

Swapnrang said...

शर्मो-हया का रंग लाल और आक्रोश का रंग भी लाल.दोनों का अद्भुत संगम है आपकी कहानी.

नीरज गोस्वामी said...

कमाल का लेखन...वाह...

नीरज