Monday, September 6, 2010

सुख हमेशा चेतना से बाहर रहता है


हर पुस्तक अपने ही जीवन से एक चोरी की घटना है. जितना अधिक पढ़ोगे उतनी ही कम होगी स्वयं जीने की इच्छा और सामर्थ्य है. यह बात भयानक है. पुस्तकें एक तरह की मृत्यु होती हैं. जो बहुत पढ़ चुका है, वह सुखी नहीं रह सकता. क्योंकि सुख हमेशा चेतना से बाहर रहता है, सुख केवल अज्ञानता है. मैं अकेली खो जाती हूं, केवल पुस्तकों में, पुस्तकों पर...लोगों की अपेक्षा पुस्तकों से बहुत कुछ मिला है. मैं विचारों में सब कुछ अनुभव कर चुकी हूं, सब कुछ ले चुकी हूं. मेरी कल्पना हमेशा आगे-आगे चलती है. मैं अनखिले फूलों को खिला देख सकती हूं. मैं भद्दे तरीके से सुकुमार वस्तुओं से पेश आती हूं और ऐसा मैं अपनी इच्छा से नहीं करती, किये बिना रह भी नहीं सकती. इसका अर्थ यह हुआ कि मैं सुखी नहीं रह सकती...

- मारीना की डायरी से

9 comments:

अनिल कान्त said...

कई कई बार मैंने महसूस किया है इसे ....अब पढ़ भी रहा हूँ

शारदा अरोरा said...

ये विषय तो बहुत लम्बा है , हर कोई अपनी अपनी चेतना के तल पर सुख खोजता है , हर किसी के लिये सुख के मानी अलग अलग हैं , मगर सुख है कि कभी खोजने से नहीं मिलता ....

Rangnath Singh said...

यानी हमने जाने-अनजाने स्वयं ही अपने हिस्से दुख चुन लिया है :-)

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कह रही हैं कि जो अधिक पढ़ लेता है वह यह तथ्य जानता कि कि वह कितना अल्पज्ञ है।

Asha Joglekar said...

मै पढती भी हूँ और दुखी भी नही हूँ । सुख तो अपने अंदर से आता है । इसके लिये मान कर चलें कि हम सुखी हैं बहुत सुखी हैं क्यूंकि हमारे पास पढने को किताब भी है और समय भी ।

Swapnrang said...

सुख और दुःख दोनों चेतना के बाहर ही होते है ,जिस चेतना की बात आप या मरीना करती है उसे ही आत्मा कहते है.और आत्मा के लिए सुख- दुःख दोनों एक सामान है दोनों का कोई अस्तित्व नहीं होता .

ASHOK BAJAJ said...

आपका पोस्ट सराहनीय है. हिंदी दिवस की बधाई

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

- यह बात भयानक है. पुस्तकें एक तरह की मृत्यु होती हैं.
- सुख हमेशा चेतना से बाहर रहता है, सुख केवल अज्ञानता है

इसलिये कभी जब पुस्तकें मुझपर हावी होने लगती हैं मैं पुस्तकों को डिच कर देता हूँ... कभी कभी जब मैं उनपर हावी होने लगता हूँ, वो मुझे भी डिच करने से नहीं चूंकती और इस तरह ये रिश्ता बनता-बिगडता रहता है पर न उन्हें मेरे बिना चैन आता है और न मुझे उनके बिना...

अनुजा said...

कहना पडता है.....
शायद यही सच है.....
सवाल तो हर बार करती हूं अपने से
कुछ और जवाब पाने की उम्‍मीद में
पर हर बार का सच यही मिलता है
शायद यही सच है.......;