Saturday, August 14, 2010

वतन के लिये


यही तोहफ़ा है यही नज़राना
मैं जो आवारा नज़र लाया हूँ
रंग में तेरे मिलाने के लिये
क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर लाया हूँ
ऐ गुलाबों के वतन
पहले कब आया हूँ कुछ याद नहीं
लेकिन आया था क़सम खाता हूँ
फूल तो फूल हैं काँटों पे तेरे
अपने होंटों के निशाँ पाता हूँ
मेरे ख़्वाबों के वतन

चूम लेने दे मुझे हाथ अपने
जिन से तोड़ी हैं कई ज़ंजीरे
तूने बदला है मशियत का मिज़ाज
तूने लिखी हैं नई तक़दीरें
इंक़लाबों के वतन
फूल के बाद नये फूल खिलें
कभी ख़ाली न हो दामन तेरा
रोशनी रोशनी तेरी राहें
चाँदनी चाँदनी आंगन तेरा
माहताबों के वतन

- कैफ़ी आज़मी

6 comments:

समयचक्र said...

बढ़िया रचना ...सुन्दर प्रस्तुति...
स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं.

अमिताभ मीत said...

नायाब ! नायाब !!

बहुत बहुत शुक्रिया .... इसे हम तक पहुंचाने के लिए ....

अनिल कान्त said...

waah !!
shukriya

Rangnath Singh said...

ब्लाग की नई साज-सज्जा बहुत सुंदर लगी। कैफी साहब तो हमेशा उम्दा रहे हैं।

शिवम् मिश्रा said...

एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जय हिंद !!

शैलेन्द्र नेगी said...

रंग में तेरे मिलाने के लिये
क़तरा-ए-ख़ून-ए-जिगर लाया हूँ
ऐ गुलाबों के वतन
...कैफ़ी आजमी को अभी- अभी पढ़ना शुरू किया है लेकिन अभी तक उनकी हर रचना बेजोड़ है...सुंदर पंक्तियाँ पढ़ाने के लिए शुक्रिया और साथ ही स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ.