Wednesday, January 27, 2010

टोहते

पारुल की दुनिया में गयी तो कुछ लाइनों में अटक ही गयी...
सो उस अटकन से निकलने के लिए पारुल के ब्लॉग से कुछ
बूँदें ले आई अपनी दुनिया में...मांगकर...शुक्रिया पारुल!


चाहें तो
रुख कर लें
अपनी-अपनी देहरियों का
चाहे तो
भटकन ही बना लें
शेष जीवन का उद्देश्य
जो भी हो,
जो भी
पर तय कर लें
कर लें सुनिश्चित
क्योंकि जीवन में
इत्मीनान बहुत $जरूरी है...
......
....
...
बरसों बाद खुद को टोहते
अपने निपट
एकाकीपन में जाना कि
तुम्हारे साथ
तुम्हारे बिना जीने से
अधिक प्रीतिकर रहा
तुम्हारे बिना तुम्हारे साथ जीना...
-पारुल

पारुल के ब्लॉग का लिंक-
http://parulchaandpukhraajkaa.blogspot.com/

7 comments:

Udan Tashtari said...

वाह जी, पारुल जी का जबाब नहीं. आभार यहाँ प्रस्तुत करने का.

संजय भास्‍कर said...

क्या बात है , लाजवाब लिखा है आपने ।

संजय भास्‍कर said...

THANKS TO PARUL JI..

सुनीता शानू said...

पारूल जी हमेशा से ही बहुत खूबसूरत लिखती हैं। आपकी पसंद लाजवाब है...शुक्रिया प्रतिभा जी।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर रचना!
पारुल जी को बधाई!
आपको धन्यवाद!

Anonymous said...

बहुत ही सुन्दर लाइने है........

Himanshu Pandey said...

नियमित पाठक हूँ पारुल जी के ब्लॉग का ! आभार इस प्रस्तुति के लिये !