Thursday, January 7, 2010

तेरे इश्क में

कई बार लिखे हुए को पढऩा नहीं सुनना ज्यादा अच्छा लगता है कोई सुनाए अगर प्यार से. ठीक उसे तरह कभी-कभी सुने हुए को पढऩा भी बहुत अच्छा लगता है, धुनों को महसूस करते हुए हर लफ्ज पर उंगलियां रखते हुए आगे बढ़ते जाना...आज इश्क की नब्ज़ पर हथेलियां रख देने को जी चाहा...
तेरे इश्क में... तेरे इश्क में...
राख से रूखी
कोयले से काली...
रात कटे ना हिज्राँ वाली
तेरे इश्क में...हाय,
तेरे इश्क में...
तेरी जुस्तजू करते रहे
मरते रहे
तेरे इश्क में...
तेरे रू-ब-रू,
बैठे हुए मरते रहे
तेरे इश्क में
तेरे रू-ब-रू, तेरी जुस्तजू
हाय ...तेरे इश्क में...
बादल धुने...मौसम बुने
सदियाँ गिनीं
लम्हे चुने
लम्हे चुने मौसम बुने
कुछ गर्म थे कुछ गुनगुने
तेरे इश्क में...
बादल धुनें मौसम बुने
तेरे इश्क में...तेरे इश्क में...
तेरे इश्क में..हाय... तेरे इश्क में
तेरे इश्क में तनहाईयाँ ...
तनहाईयाँ तेरे इश्क में
हमने बहुत बहलाईयाँ
तन्हाइयां ...तेरे इश्क में
रूसे कभी
मनवाईयां... तनहाईयां...
तेरे इश्क में
मुझे टोह कर
कोई दिन गया
मूझे छेड़कर कोई शब गयी
मैंने रख ली सारी आहटें
कब आई थी शब् कब गयी
तेरे इश्क में,
कब दिन गया शब् कब गई...
तेरे इश्क में...तेरे इश्क में...
हाय... तेरे इश्क में
राख से रूखी...कोयले से काली
रात कटे ना हिज्रां वाली
दिल जो किये...हम चल दिये
जहां ले चला
तेरे इश्क में
हम चल दिए
तेरे इश्क में
हाय...तेरे इश्क में
मैं आसमान
मैं ही ज़मीं,
गीली ज़मीं ,
सीली ज़मीं,
जब लब जले पी ली ज़मीं
गीली ज़मीं तेरे इश्क में...
शब्द- गुलज़ार
आवाज़ - (जो यहां है नहीं) रेखा भारद्वाज
अल्बम - इश्का-इश्का

12 comments:

समयचक्र said...

सुन्दर प्रस्तुति.....धन्यवाद

अजय कुमार said...

आभार अच्छी रचना प्रस्तुत करने के लिये

sonal said...

यह गीत जितना सुन्दर है उतना ही अर्थपूर्ण भी पढ़ते पढ़ते अचानक कुछ भूली बिसरी पंक्तियों का स्मरण हो आया
"लकड़ी जल कोयला भई,कोयला जल भयो राख
मैं बिरहन ऐसी जली कोयला भई ना राख "
http://sonal-rastogi.blogspot.com

Udan Tashtari said...

रचना बहुत पसंद आई.

वाणी गीत said...

तेरे इश्क में ...गीली सीली जमीन तेरे इश्क में ...
प्लयेर के साथ इसे पढ़ना और अच्छा लगता शायद ...!!

vandana gupta said...

sundar prastuti.

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर प्रस्तुति.....धन्यवाद

संजय भास्‍कर said...

बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......

पंकज said...

ये इश्क क्या न करबाये हमसे..

विजय प्रताप said...

tionwah....sundar rachna padhai

प्रज्ञा पांडेय said...

गीत बहुत सुंदर . गुलज़ार साहेब के गीतों में फूलों कि खुशबु बसी होती है !आभार !!

RAHUL SRIVASTAVA said...

गुलजार के अल्फाज जेहन में उतारते चले जाते हैं. शुक्रिया...... इतनी सुंदर रचना को महसूस करने का अवसर देने के लिए.