Saturday, July 4, 2009

एक दिल बच गया है साबुत

हमने भी विदा कर दिया प्रेम
रुखसत कर दीं ख़ुद को टटोलने की
कोशिश करती बातें
ख़ुद पर से उतार दिया चांदनी का जादू
यह सफर यहां खत्म होता है

अब एक नाव तट से बंधी खड़ी है
एक आदमी कहीं पगडंडियों में खो गया है

पर, एक दिल बच गया है साबुत

कितना कुछ नष्ट होने के बाद भी
एक तपिश कहीं बची रही गयी है
शायद, कम ही जानते थे हम भी
गमे इश्क को।

दुख, प्रेम और समय

बहुत से शब्द
बहुत बाद में खोलते हैं अपना अर्थ

बहुत बाद में समझ में आते हैं
दुख के रहस्य

खत्म हो जाने के बाद कोई संबंध
नए सिरे से बनने लगता है भीतर
...और प्यार नष्ट हो चुकने
टूट चुकने के बाद

पुनर्रचित करता है खुद को
निरंतर पता चलती है अपनी सीमा
अपने दुख कम प्रतीत होते हैं तब
और अपना प्रेम कहीं बड़ा...
- आलोक श्रीवास्तव

5 comments:

अजय कुमार झा said...

वाह ..अलोक जी की दोनों ही कवितायें बहुत ही उम्दा लगी..यहाँ हम तक पहुचाने का शुक्रिया प्रतिभा जी..

नीरज गोस्वामी said...

अद्भुत कवितायेँ हैं..बधाई अलोक जी को...
नीरज

सदा said...

हमने भी विदा कर दिया प्रेम
रुखसत कर दीं ख़ुद को टटोलने की
कोशिश करती बातें
ख़ुद पर से उतार दिया चांदनी का जादू

बंहुत ही सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

जीवन एक सफर, इसमें यादें आती जाती है।
रिश्तों की बुनियाद, राह में बनती जाती है।।

बधाई...

Akanksha Yadav said...

Bhav ki gahraiyon men utarkar likhi gai kavita...badhai !

“शब्द-शिखर” पर आप भी बारिश के मौसम में भुट्टे का आनंद लें !!