Saturday, May 2, 2009

विस्साव शिम्बोर्स्का की कविता विज्ञापन

नींद की गोली हूँ
घर में असरदार,
दफ्तर में उपयोगी।
मैं इम्तहान दे सकता हूँ
और गवाही भी।
मैं टूटे प्याले जोड़ सकता हूं।
आपको सिर्फ मुझे ले लेना है,
पिघलने देना है अपनी जीभ के नीचे
और फिर निगल जाना है
एक गिलास पानी के साथ।
मैं बिगड़ी किस्मतें बनाना जानता हूं,
बुरी खबरें पचाना जानता हूं,
अन्याय के एहसास को कम कर सकता हूं,
ईश्वर की कमी को भर सकता हूँ
और विधवाओं के लिए चुन सकता हूं
और आकर्षक नकाब
आप किस सोच में पड़े हैं-
भला मेरी रासायनिक करुणा से
भरोसेमंद क्या होगा!
आप अभी नौजवान हैं।
वक्त है कि सीख लें
अपने आपको ढीला छोड़ देना
कोई जरूरी नहीं कि मुट्ठियां
हमेशा भिंची और चेहरा तना रहे।
अपने खालीपन को मुझे दे दो।
मैं उसे नींद से भर दूंगा।
एक दिन आप शुक्रगुजार होंगे की
मैंने आपको चार पैरों पर चलना सिखाया।
बेच दो मुझे अपनी आत्मायों भी
उसका खरीदार कहां है
कि अब उसे भरमाने के लिए
कोई और शैतान नहीं रहा।

5 comments:

Alok Nandan said...

आप जो कुछ भी यहां पर परोस रही हैं वह चबाचबा के खाने लायक है, आपके ब्लाग पर आकर मैं अक्सर ठहर जाता है...

आशीष कुमार 'अंशु' said...

बहूत सुन्दर, बधाई हो

इष्ट देव सांकृत्यायन said...

विचित्र स्थिति है. यह नींद की गोली अब तो इतने रूपों में उपलब्ध है कि पहचान भी मुश्किल हो गई है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बेच दो मुझे अपनी आत्मायों भी
उसका खरीदार कहां है
कि अब उसे भरमाने के लिए
कोई और शैतान नहीं रहा।

प्रतिभा जी!
आपने मनोव्यथा को
बड़े सुन्दर ढंग से शब्दों में पिरोया है।
बधाई।

ALOK PURANIK said...

बढिया कहा है।

इश्तिहारों को दिल में बसाके तुम रखना
घणी दूर तक इनकी करामात होगी
इश्तिहार हैं हम भी और इश्तिहार हो तुम भी
कहीं फड़फड़ा के मुलाकात होगी