Sunday, May 17, 2009

परवीन के गली- 4

पूरा दु:ख और आधा चाँद
हिज्र की शब और ऐसा चांद

किस मकतल से गुजऱा होगा
ऐसा सहमा-सहमा चांद

यादों की आबाद गली में
घूम रहा है तनहा चांद

मेरे मुंह को किस हैरत से
देख रहा है भोला चांद

इतने घने बादल के पीछे
कितना तनहा होगा चांद।

मकतल- जहां वध किया जाता है

7 comments:

निर्मला कपिला said...

bahut sunder abhivyakti hai shubhkamnayen

विजय तिवारी " किसलय " said...

प्रतिभा जी अच्छा लिखा है

"इतने घने बादल के पीछे
कितना तनहा होगा चाँद "

विजय

शिरीष कुमार मौर्य said...

परवीन शाकिर की शायरी मुझे बहुत प्रिय रही है....उनकी ग़ज़लों में आम विरही स्त्रियों की टीस है और उनके प्रेम को कभी ना समझ पाने की पुरुषों की असफलता का बयान भी. उनकी असमय मौत से एक बड़ी खाली जगह बनी है जो अब भी अखरती है..... इन ग़ज़लों से आपने सुदूर किसी अतीत में पहुँचा दिया.

वीनस केसरी said...

प्रतिभा जी,
बहुत सुन्दर गजल कही आपने
श्रेष्ठ भाव लिए सुन्दर गजल है

ये शेर ख़ास पसंद आया

किस मकतल से गुजऱा होगा
ऐसा सहमा-सहमा चांद

वीनस केसरी

Pratibha Katiyar said...

अल्लाह केसरी जी हमने नहीं परवीन शाकिर ने लिखा है इस खूबसूरत ग$जल को. सारी बधाई, आप सबका स्नेह उनका है. मैं भी उनकी घनघोर फैन हूं.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

चाँद कभी तन्हा नही होता,संग में रहते तारे हैं।
नभ की नगरी उसके संग,रहते सभी सितारे हैं।

प्रवीण द्विवेदी की दुकान said...

उम्दा शेर है परवीन जी की उनके इन शेरो में चंद लाइन मेरी भी ...

कभी है पूरा कभी अधूरा
बदला बदला होगा चाँद !

किस रकीब का पीछा करता
पागल पागल फिरता चाँद !