Sunday, April 26, 2009

कविता ही बचायेगी



धीरे-धीरे खत्म हो रहा sab कुछ,
जीवन में घुलने लगा है
मीठा जहर

प्रेम ने कर लिया है किनारा।
कलाएं औंधे मुंह पड़ी हैं,
व्यावसायिकता सिर पर सवार है
लेकिन है वह भी खोखली ही।

घटनाएं अब हादसों मेंतब्दील हो चुकी हैं,
यातनाएं आदत में ही गई हैं शुमार।
दरख्तों पर चिडिय़ा नहीं
भय बैठता है इन दिनों।

खत्म हो रहा है सब कुछ
धीरे-धीरे और
ऐसे में हम लिख रहे हैं कविताएं
क्योंकि इस नष्ट होती धरती को
कविता ही बचायेगी एक दिन
देख लेना....
- प्रतिभा

18 comments:

अजय कुमार झा said...

kya baat hai kavtitaa jee, bahut sundar, sachmuch kavitaa hamein jindaa rakhe hue hai ya ham kavitaao ko sochne kee baat hai...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आशावाद का सन्देश देती,
मन के अन्तरद्वन्द्व को प्रकट करती हुई,
सुन्दर कविता।

MANVINDER BHIMBER said...

bahut sunder panktiya hai prtibha ji...sunder likhahai

अखिलेश्‍वर पांडेय said...

सुंदर अभिव्‍यंजना- मेरे तरफ से भी ये पंक्तियां स्‍वीकार कीजिये-

हम चाहें आसमां के लिए लिखें कितनी ही कविताएं, उसमें व्‍यक्‍त सदा धरती ही होती है।

मुनीश ( munish ) said...

Height of self indulgence . How many read the kind of poems u have written about? A few duty bound good men entrenched in snow wih SLRs under their chin will save this country and even they can't guarantee safety of this big ,bad world!

निर्मला कपिला said...

bahut sunder asha se bharpoor abhivyakti hai

विजय तिवारी " किसलय " said...

सुन्दर भाव हैं , क्या कल्पना की है आपने प्रतिभा जी - :"दरख्तों पर चिडिय़ा नहीं
भय बैठता है इन दिनों।:"
-विजय

deeps said...

bhahut sundar kavita hai

Puneet said...

kavitaye hi sahas jagati hai...

kavitaye hi yoddha banati hai..

के सी said...

बहुत सुन्दर कविता है,
उम्मीदें कब हमारा दामन छोडेंगी पता नही पर कवि मन नए हौसले नए ख्वाब दिखाता रहता है .

Vinay said...

आशावाद की भोर जैसी कविता है

---
तख़लीक़-ए-नज़रचाँद, बादल और शामगुलाबी कोंपलेंतकनीक दृष्टा

समयचक्र said...

आशावाद का सन्देश संजोती अच्छी रचना . धन्यवाद.

L.Goswami said...

आशा है ऐसा ही हो ..सुन्दर इन्सान को आशा वादी होना ही चाहिए.

निशांत मिश्र - Nishant Mishra said...

Nice blog, Pratibha ji! I am here for the first time.
U have written something about me in Dainik Jagran. I don't read/subscribe newspaper and the link given by U is not opening safely. Could U please send me a pdf at my e-mail the.mishnish@gmail.com ?
I'll be grateful to U for that.

अनिल कान्त said...

बहुत सही बयां किया ...आपने कविता के माध्यम से बहुत अच्छी बात कही

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

Himanshu Pandey said...

कवि अशोक सिंह जी की एक पंक्ति है -
"आज के इस दौर में भी गीत ही मैं लिख रहा हूँ..."

इन पंक्तियों का संदेश भी ऐसा ही है ।

Pratibha Katiyar said...

मैं हमेशा यही सोचती हूं कि कविताएं लिखना मेरे बस की बात नहीं. कुछ टूटे से ख्यालों को एक फ्रेम में डाल देना कविता तो नहीं हो सकता. एक अकवि की टूटी-फूटी लाइनों को आप लोगों का इतना स्नेह मिला इसके लिए आभारी हूं. सबका बहुत शुक्रिया!

ritu raj said...

haan sachchi me kavita hi bachayegi ekdin. bade sundar sabd hai aapke. likhe rahe meri shubhakamnaye aapko.