Sunday, April 12, 2009

दुनिया के मशहूर प्रेम पत्र-११ आम आदमी

जितने भी प्रेम पत्र हमने अब तक पढ़े जरा सोचिए उनमें से उन लोगों के नाम बदल जाते तो भी प्यार की तपिश में कोई कमी आती क्या? नहीं ना! आज से आम आदमी के प्रेम पत्रों का सिलसिला शुरू कर रही हूं। यह आम आदमी भी काफी खास है साहित्य की दुनिया का। लेकिन मैंने उनके पत्रों को यह जाने बगैर पढ़ा था कि किसने लिखे, किसे लिखे... यानी आम आदमी के पत्र। कथादेश में प्रकाशित हो चुके ये पत्र संपादक की अनुमति के बाद यहां दे रही हूं। 1।2।७७
प्रिय.....
बम्बई से आज ही लौटा और तुम्हारा खत देखा। एक उफनते शहर से लौटकर घिर आने वाले सन्नाटे या खालीपन के बीच आर। पोलाक ने पढ़ा होगा, अपनी मित्र का खत, जो उसे लम्बी यात्रा की दूरी से लौटने के बाद मिला होगा। मैं भी ठीक वैसा ही अनुभव कर रहा हूं, तुम्हारा खत पढऩे के बाद। कुछ अद्र्ध जाग्रत और अद्र्ध विस्मृत सी भाषा के भीतर टहलते हुए जैसे मैं वह भी पढ़ रहा हूं, जिसे तुम लिखते-लिखते ठिठक गयी हो। तुम मेरे लिए एक नो व्हेयर गर्ल की तरह हो, जिसे मैं कहां बरामद करूं।मैं इन दिनों एक हड़बड़ी में रहता हूं, गालिबन मुझे कहां जाना है, एक ऐसी जगह जिसका मुझे पता ही नहीं है। मुमकिन हो कि वह जगह कहीं हो ही नहीं और हुई भी तो मेरे भीतर होगी। शायद, अपने से अपने की तरफ की दौड़ है, जिसमें बीच रास्ते में तुम खड़ी हो, मैं जब खत लिखता हूं तो लगता है, सहसा बीच में खड़ी लड़की से बात कर रहा हूं।पहले ऐसा कोई नहीं था जीवन में जिससे बातें की जा सकती हों, ऐसी बातें जिसमें अपनी ही प्रदक्षिणा होती है। तब लगता है लाइफ सीम्स टु ऑफर नो अदर सोर्स ऑफ सैटिस्फैक्शन। एक तसल्ली सी होती है, खत लिखने के बाद। वरना तो वक्त मुझे धीरे-धीरे हलाल करता जान पड़ता था। हालांकि जब दफ्तर की इमारत में किसी दिन बिना इच्छा के जाना पड़ता है तो लगता है जैसे आई एम बींग किल्ड हियर विद काइंडनेस।मुझे पैसे देकर धीरे-धीरे हलाक किया जा रहा है।बहरहाल, यहां मैं लिख कम रहा हूं, पढ़ खूब रहा हूं। पिछले रविवार को ही मैंने जॉन स्टुअर्ट मिल की ऑन लिबर्टी पूरी की। अब प्रिसिंपल ऑफ पॉलिटिकल इकोनॉमी पढऩा शुरू किया है। माक्र्स की पॉलिटिकल इकोनॉमी जो दृष्टि देती है उससे यह बिलकुल भिन्न है. मिल मुझे माक्र्सवादी दृष्टि से देखने पर पूंजीवाद का पक्षधर लगता है. क्योंकि फ्यूचर ऑफ वर्किंग क्लास वाले अध्याय में वह कहता है, दैट मैन वक्र्ड बेस्ट व्हेन दे वक्र्ड इन देयर ओन इंट्रेस्ट्स एंड इन द होप्स ऑफ एक्युमिलेटिंग बाई देयर ओन एफट्र्स, रिवॉड्र्स. इसका अभिप्राय यही हुआ कि वह इस बात से चिंतित है कि व्हेन सब्सटेंस वाज गारंटीड, मोटिवेशन टु वर्क वुड डिस्पेयर. ये बातें तुम्हें इसलिए लिख रहा हूं कि तुम अर्थशास्त्र को खंगाल चुकी हो. और अब तो तुम लिखने में भी अर्थशास्त्र का सा अनुशासन बरतने लगी हो. याद रखो, संबंधों में अर्थशास्त्र का सा अनुशासन नहीं चलता. अगर ऐसा हुआ तो स्टुअर्ट मिल खुद हेरिएट से अपने संबंधों का ेइतनी दूर तक नहीं ले जा सकता था. तुम्हें यह जानकर बहुत अच्छा लगेगा कि एक अर्थशास्त्री को एक स्त्री ने वह सिखाया, जिसके अभाव में वह कम से कम जॉन स्टुअर्ट मिल तो नहीं ही बन सकता था. शी वाज हिज हिज ऑडियंस एंड हिज सोर्स, ही रोट फ्रॉम हर एंड फॉर हर. हालांकि, पहले वह उसकी इंटीलेक्चुअल कम्पैनियन थी बाद में जीवन संगिनी भी बन गयी. इट वाज वाज अ मैरिज ऑफ इक्विल्स. तुम्हें यह जानकर थोड़ा अचरज होगा कि मैं अपने कॉलेज के दिनों में कई बार साइंस का स्टूडेंट होकर भी इकोनॉमिक्स की क्लास में बैठ जाया करता था. मिसेज रजवाड़े जो अर्थशास्त्र पढ़ाती थीं वे बहुत सुंदर थीं. वे अर्थशास्त्र बहुत अच्छा पढ़ाती थीं. लेकिन उनका दाम्पत्य अर्थशास्त्र की तरह बैलेंस्ड नहीं था. एक कहानी भी लिखी थी मैंने उन्हें लेकर. पर, अब लगता है यदि मैंने तब जॉन स्टुअर्ट मिल और हेरिट टेलर के रिश्तों के बारे में पढ़ा होता तो शायद एक-दूसरे तरह की कहानी लिख सकता था क्योंकि, ये संबंध काफ्का-मिलेना वाले नहीं था. बल्कि बहुत रैशनल थे. मैं इनके बीच के खतो-किताबत को ढूंढकर पढऩा चाहता हूं.आई हैव ऑलवेज बीन विशिंग फॉर अ फ्रेंड हूम आई कैन एप्रिशियेट होली, विदाउट रिजर्वेशन एंड रिस्ट्रक्शन टू. और कहूं कि इस परिभाषा के भीतर तुम हो तो तुम्हें कोई ऐतराज तो नहीं होगा. मैं मिल की एक किताब की तलाश में हूं. द सब्जेक्शन ऑफ वुमन यदि तुम्हारे कॉलेज में मिल जाये तो उसे मुझे भेज देना. बाकी अगले खत में, मैं ढूंढूंगा कि कहां ठिठककर सोचने लगी होगी तुम. सोचने या खुद को खोजने....
तुम्हारा
....................
सिलसिला जारी....

5 comments:

अनिल कान्त said...

बेहतरीन .....कैसे बयां करुँ

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

समयचक्र said...

आम आदमी का पत्र पढ़कर अच्छा लगा. आगे भी सिलसिला बनाये रखें इंतजार रहेगा. धन्यवाद्.

Pratyaksha said...

ऐसा पत्र लिखने वाला खास ही तो है ...

मोहन वशिष्‍ठ said...

वाह जी वाह अति सुंदर काश
आगे का बेसब्री से इंतजार

रंजू भाटिया said...

आम आदमी का ख़ास पत्र ...पढना अच्छा लगा ..शुक्रिया .अगले अंक का इन्तजार रहेगा