Tuesday, March 24, 2009

बर्तोल्त ब्रेख्त की कवितायें



कमजोरियां

कमजोरियां
तुम्हारी कोई नहीं थीं
मेरी थी एक
मैं करता था प्यार...

सुख

सुबह खिड़की से बाहर का नजारा
फिर से मिली हुई
पुरानी किताब
उल्लसित चेहरे
बर्फ, मौसमों की आवाजाही
अखबार, कुत्ता,
डायलेक्टिक्स,
नहाना, तैरना, पुराना संगीत
आरामदेह जूते
जज्ब करना नया संगीत
लेखन, बागवानी मुसाफिरी
गाना मिलजुल कर रहना...

3 comments:

ओम आर्य said...

आपने तो पूरा गुलशन बना के रखा है, मैं आते रहने की कोशिश karoonga.

Anonymous said...

आपके ब्‍लाग पर बर्तोल्‍त ब्रेख्‍त को पढने के बाद मेरा भी दिल कुछ कहने को आतूर हो रहा है-

अभी तो धूप निकलने के बाद सोया है
तमाम रात तुझे याद करके रोया है

रगों में दौड गयी बनके लहू हर चाहत
ये किसने दामने अहसास को भिगोया है।

neelima garg said...

all entrise are good....