Tuesday, February 10, 2009

एकांत की खातिर

अस्तित्व सिर्फ़ साथ भर के लिए नहीं अपनी
तन्हाई के लिए भी जरूर चाहिए। दूर कमरे
में बैठा जो मेरी तन्हाई की हिफाज़त कर सके।
साथ के लिए तो बहुतों ने किसी न किसी को
चाह होगा पर किसी ने एकांत खातिर भी किसी
को चाहा हो नहीं जानती।
मैंने जरूर चाहा है........
अमृता की डायरी से.....

1 comment:

विजय तिवारी " किसलय " said...

" एकांत की खातिर " में सही कहा है कि अस्तित्व तो हर जगह होता है, और परिस्थितियाँ कुछ भी करने को मजबूर कर देती हैं.
अस्तित्व की खातिर इंसान बहुत कुछ कर गुजरता है, चाहे वह एकांत हो या फ़िर भीड़-भाड़..
अमृता की डायरी से ... बस मैं यहाँ इतना ही कहना चाहूंगा की नज़रिए बदलते रह्तरे हैं और उन्हीं का ही परिणाम अच्छे और बुरे के रूप में हमारे सामने होता है
-विजय