Saturday, January 31, 2009

पहला वसंत


जब आँख खुली तो सिरहाने वसंत को पाया
उसकी खुशबु से पूरा कमरा
महक रहा था न जाने कब और कैसे
मेरे सिरहाने
कोई चुपके से वसंत सजा गया।
इतने वर्षों से तो मैंने
कभी पहचाना नहीं इसे
और आज जब देखती हूँ
तो लगता है सदियों पुरानी है
पहचान
महकती अम्राइयां, कूकती कोयलें
और खिलखिलाता बचपन
सबकुछ बेहद करीबी से
लगते हैं आज
क्या मेरे जीवन का
पहला वसंत है.....


2 comments:

Anwar Qureshi said...

बहुत सुंदर लिखा है ...बधाई ..

मनोज द्विवेदी said...

BEHUD KHUBSURAT RACHANA..MAN KO CHHU GAYI.