Sunday, November 16, 2008

पहली नजर का प्यार


वे दोनों मानते हैं

की अचानक एक ज्वार उठा

और उन्हें हमेशा के लिए एक कर गया

कितना खूबसूरत है शंशय हीन विश्वास

पर शंशय इससे भी खूबसूरत है

अब चूँकि वे पहले कभी नहीं मिले

इसलिए उन्हें विश्वास है

की उनके बीच कभी कुछ नहीं था इससे पहले

तो फ़िर वह शब्द क्या था

जो गलियों, गलियारों या सीढियों पर

फुसफुसाया गया था?

क्या पता वे कितनी बार एक दूसरे के

एक-दूसरे के kareeb से गुजरे हों

mai उनसे पूछना चाहती हूँ

क्या उन्हें याद नहीं

रिवाल्विंग दरवाजे में घुसते हुए सामने पड़ा एक चेहरा

या भीड़ में कोई sorry कहते हुए आगे बढ़ गया था

या शायद किसी ने रौंग नम्बर कहकर फोन रख दिया था

लेकिन mai जानती हूँ उनका जवाब

नहीं उन्हें कुछ भी याद नहीं

उन्हें ये जानकर ताज्जुब होगा

की अरसे से संयोग उनसे आन्ख्मिचोनीखेल रहा था

पर अभी वक़्त नहीं आया था

की वह उनकी नियति बन जाए

वह उन्हें बार- बार करीब लाया

और दूर ले गया

अपनी हँसी दबाये उसने उनका रास्ता रोका

और फ़िर उछालकर दूर हट गया

नियति ने उन्हें बार-बार संकेत दिए

चाहे वे उन्हें न समझ पाए हों

तीन साल पहले की बात है

या फ़िर pichale मंगल की

जब एक सूखा हुआ पत्ता

किसी एक के कंधे को छूते

दूसरे के दामन में जा गिरा था

किसी के हांथों से कुछ गिरा

किसी ने कुच उठाया

कौन जाने वह एक गेंद ही हो

बचपन की झाडियों में खोई हुई

कई दरवाजे होंगे

जहाँ एक की दस्तक पर

दूसरे की दस्तक पड़ी होंगी

हवाई-अड्डे होंगे

जहाँ पास-पास खड़े होकर

सामान की जाँच करवाई होगी

और किसी रात देखा होगा एक ही सपना

सुबह की रौशनी में धुंधला पड़ता हुआ

और फ़िर हर शुरुआत

किसी न किसी सिलसिले की

एक कड़ी ही तो होती है

क्योंकि घटनाओं की किताब

जब देखो अधखुली ही मिलती है.....


शिम्बोर्स्का की यह कविता हर प्यार करने वाले

को बेहद अजीज लगती है...यही शिम्बोर्स्का का

जादू है जो एक बार सर चढ़ जाए तो फ़िर कभी नहीं

उतरता....

3 comments:

Vinay said...

आधुनिकतावाद से भरपूर!

विजय तिवारी " किसलय " said...

प्रतिभा जी
नमस्कार
आपने एक बेहद
संयोग मय, संशय पर आधारित
रचना से अवगत कराया
अच्च्छा लगा
वाकई हम जीवन में एक दूसरे कहीं न कहीं
भले ही मिले हों लेकिन संयोग होने पर ही एक दूसरे को जान पाते हैं

शिम्बोर्स्का की यह कविता हर प्यार करने वाले
को बेहद अजीज लगती है...यही शिम्बोर्स्का का
जादू है जो एक बार सर चढ़ जाए तो फ़िर कभी नहीं
उतरता....

आपका
डॉ विजय तिवारी " किसलय "

Anonymous said...

behtareen